मागरीप्रचारिणी पत्रिका ___ कथा को इतिहास का ध्यान बहुत था। नायक गोपाल' ऐतिहासिक व्यक्ति है। गघवचेतन ( जो 'पदमावत' में भी है) ऐतिहासिक व्यक्ति जान पड़ता है। यही मलिक नायव काफूर हजारदीनारी तो नहीं है! गुजरात-विजय में और लोगों के साथ यह गुलाम भो खंमात से पकड़कर दिल्ली भेजा गया था, इमको सुंदरता ने अलाउद्दीन को मोहित कर लिया था। फरिश्ता लिनता है कि यह खंभात में एक हजार दीनार में मोल लिया गया था, इसी से इसे हमारदोनारी कहते हैं। गुजरात-विजय के यात हो अलाउद्दीन ने रणथं मोर और चित्तौड़ पर आक्रमण किए थे। राघवचेतन इसका पुराना नाम रहा होगा ! राघवचेतन को मलिक काफूर से मिला देने पर देवगिरि पर हुए दूसरे आक्रमण को प्रामाणिकता भी सिद्ध हो जाती है। जायसी ने राघवचेतन की जो कल्पना की है उसमें कदाधित गुजरात के राय कर्ण के मंत्री माधव को कथा भी जुड़ गई है। अलाउद्दीन के समकालीन जिनप्रभसूरि ने अपने 'तीर्थकल्प' में लिखा है कि विक्रम संवत् १३५६ ( ई० स. १२६६ ) में सुलतान अल्लावदीण (अलाउद्दीन खिलजी ) का सबसे छोटा भाई उल खाँ ( उलग खाँ), [ कर्णदेव के ) मंत्री माधव की प्रेरणा से ढिल्लो (दिल्ली) नगर से गुजरात को चला।' किंकेड और पारसनीस ने इस विषरण में इतना और जोड़ दिया है कि माधव की पत्नी के रूप पर मोहित होकर कर्णदेव ने, जब माधव अहिलपत्तन में नहीं था, उसीके भाई को मारकर उसे अपने अधिकार में कर लिया । माधव ने लोटकर जब यह सब देखा तब दिल्ली जाकर अलाउद्दीन को गुजरात पर आक्रमण करने को प्ररित किया। जायसी का राघवचेतन द्रव्य-लोभ से अलाउद्दीन को प्रेरित करता है। तो क्या 'माधव' ही नाम बदलकर 'राघव' बन बैठा! मंत्री दोनों ही हैं। गघवचेतन के भाचरगा में हिंदुत्व का लेश भी नहीं। अलाउद्दीन के शासन में हिंदू को सेनापतित्व ! मलिक काफूर तो पहले हिद था बाद में मुसलमान हुआ। 1- यह अलाउद्दीन के समय में बहुत प्रसिद्ध गर्वया हो गया है । नागरीप्रचा- रिणी पत्रिका (नवीन सस्करण), भाग १, संवत् १९७८, श्री बजरत्नदास- लिखित'खुसरा की हिंदी कविता' नामक लेख, पंद्रहवाँ निबंध,पृष्ठ २७८ । • ---जियाउद्दीन बरानीकृत तारीखे-फीरोजशाही, पृष्ठ १६३ । -- पडित गौरीशंकर हीराचंद भोमाकृत उदयपुर राज्य का इतिहास, पृष्ठ ४७६। ४---५. हिखी भाव दि मराम पीपुल, प्रथम भाग, पृष्ठ ४३ ।
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