अक्ल का मुरब्बा और जेहन का सक़ील है। अगर वर्षों की मुशायराबाजी ने
भी आपको शायर नहीं बनाया, अगर शबे रोज़ के रटन्त पर भी आप इम्तहान
में कामयाब नहीं हो सके, अगर दल्लालों की खुशामद और मुवक्किलों की नाज़
बर्दारी के बावजूद भी आप अहाते अदालत में भूखे कुत्ते की तरह चक्कर लगाते
फिरते हैं, अगर आप गला फाड़-फाड़ चीख़ने, मेज़ पर हाथ पैर पटकने पर भी
अपनी तकरीर से कोई असर पैदा नहीं कर सकते, तो आप अमृतबिन्दु का
इस्तेमाल कीजिए। इसका सबसे बड़ा फ़ायदा जो पहले ही दिन मालूम हो
जायगा यह है कि आपकी आँखें खुल जायँगी और आप फिर कभी इश्तिहारबाज़
हकीमों के दाम फ़रेब में न फँसेंगे।'
वैद्यजी इस विज्ञापन को समाप्त कर उच्च स्वर से पढ़ रहे थे; उनके नेत्रों में उचित अभिमान और आशा झलक रही थी कि इतने में देवदत्त ने बाहर से आवाज़ दी। वैद्यजी बहुत खुश हुए। रात के समय उनकी फ़ीस दुगुनी थी। लालटेन लिये बाहर निकले तो देवदत्त रोता हुआ उनके पैरों से लिपट गया और बोला -- वैद्यजी, इस समय मुझपर दया कीजिए। गिरिजा अब कोई सायत को पाहुनी है। अब आप ही उसे बचा सकते हैं। यों तो मेरे भाग्य में जो लिखा है वही होगा; किन्तु इस समय तनिक चलकर आप देख लें तो मेरे दिल का दाह मिट जायगा। मुझे धैर्य हो जायगा कि उसके लिए मुझसे जो कुछ हो सकता था, मैंने किया। परमात्मा जानता है कि मैं इस योग्य नहीं हूँ कि आपकी कुछ सेवा कर सकूँ, किन्तु जब तक जीऊँगा आपका यश गाऊँगा और आपके इशारों का गुलाम बना रहूँगा।
हकीमजी को पहले कुछ तरस आया, किन्तु वह जुगुनू की चमक थी जो शीघ्र स्वार्थ के विशाल अन्धकार में विलीन हो गई।
४
वही अमावास्या की रात्रि थी। वृक्षों पर भी सन्नाटा छा गया था। जीतने
वाले अपने बच्चों को नींद से जगाकर इनाम देते थे। हारनेवाले अपनी रुष्ट और
क्रोधित स्त्रियों से क्षमा के लिए प्रार्थना कर रहे थे। इतने में घण्टों के लगातार
शब्द वायु और अन्धकार को चीरते हुए कान में आने लगे। उनकी सुहावनी
ध्वनि इस निःस्तब्ध अवस्था में अत्यन्त भली प्रतीत होती थी। यह शब्द समीप