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जुगुनू की चमक


अतिथि-भवन की सजावट होने लगी। बाज़ार अनेक भाँति की उत्तम सामाग्रियों से सज गये।

ऐश्वर्या की प्रतिष्ठा व सम्मान सब कहीं होता है, किन्तु किसी ने भिखारिनी का ऐसा सम्मान देखा है ? सेनाएँ बैंड बजाती और पताका फहराती हुई एक उमड़ी नदी की भाँति चली जाती थीं। सारे नगर में आनन्द ही आनन्द था। दोनों ओर सुन्दर वस्त्राभूषणों से सजे दर्शकों का समूह खड़ा था। सेना के कमांडर आगे-आगे घोड़ों पर सवार थे। सबके आगे राणा जंगबहादुर जातीय अभिमान के मद में लीन, अपने सुवर्णखचित हौदे में बैठे हुए थे। यह उदारता का एक पवित्र दृश्य था। धर्मशाला के द्वार पर यह जुलूस रुका। राणा हाथी से उतरे। महारानी चंद्रकुँवरि कोठरी से बाहर निकल आई। राणा ने झुककर वन्दना की। रानी उनकी ओर आश्चर्य से देखने लगीं। यह वही उनका मित्र बूढ़ा सिपाही था।

आंखें भर आई। मुसकराई। खिले हुए फूल पर से ओस की बूँदें टपकी। रानी बोलीं -- मेरे बूढ़े ठाकुर, मेरी नाव पार लगानेवाले, किस भाँति तुम्हारा गुण गाऊँ ?

राणा ने सिर झुकाकर कहा -- आपके चरणारविन्द से हमारे भाग्य उदय हो गये।

नेपाल की राजसभा ने पच्चीस हजार रुपये से महारानी के लिए उत्तम भवन बनवा दिया और उनके लिए दस हजार रुपया मासिक नियत कर दिया।

वह भवन आज तक वर्तमान है और नेपाल की शरणागतप्रियता तथा प्रणपालन-तत्परता का स्मारक है। पंञ्जाब की रानी को लोग आज तक याद करते हैं।

यह वह सीढ़ी है जिससे जातियाँ यश के सुनहले शिखर पर पहुँचती हैं। ये ही घटनाएँ हैं जिनसे जातीय इतिहास प्रकाश और महत्त्व को प्राप्त होता है।

पोलिटिकल रेज़ीडेंट ने गवर्नमेंट को रिपोर्ट की। इस बात की शंका थी कि गवर्नमेंट आफ् इण्डिया और नैपाल के बीच कुछ खिंचाव हो जाय। किन्तु