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नव-निधि


झिझककर धर्मसिंह के सामने जाते देखा था, उसी समय से उसके दिल में संदेह हो गया था। पर जब रात को उसने देखा कि मेरा पति इसी स्त्री के सामने दुखिया की तरह बैठा हुआ है, तब वह सन्देह निश्चय की सीमा तक पहुँच गया और यही निश्चय अपने साथ सत लेता आया था। सबेरे जब धर्मसिंह उठे तब राजनन्दिनी ने कहा था कि मैं व्रजविलासिनी के शत्रु का सिर चाहती हूँ, तुम्हें लाना होगा ही और ऐसा हुआ। अपने सती होने के सब कारण राजनन्दिनी ने जान-बूझकर पैदा किये थे, क्योंकि उसके मन में सत था। पाप की आग कैसी तेज होती है ? एक पाप ने कितनी जानें ली? राजवंश के दो राजकुमार और दो कुमारियाँ देखते-देखते इस अग्निकुण्ड में स्वाहा हो गई । सती का वचन सच हुआ। सात ही सप्ताह के भीतर पृथ्वीसिंह दिल्ली में कत्ल किये गये और दुर्गा-कुमारी सती हो गई।


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