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रानी सारन्धा


आते थे, प्यास के मारे सबका बुरा हाल था। तालु सूखा जाता था। किसी वृक्ष की छाँह और कुएँ की तलाश में आँखें चारों ओर दौड़ रही थीं।

अचानक सारन्धा ने पीछे की तरफ़ फिरकर देखा तो उसे सवारों का एक दल आता हुआ दिखाई दिया। उसका माथा ठनका कि अब कुशल नहीं है।यह लोग अवश्य हमारे शत्रु हैं। फिर विचार हुआ कि शायद मेरे राजकुमार अपने आदमियों को लिये हमारी सहायता को पा रहे हैं। नैराश्य में भी पाशा साथ नहीं छोड़ती। कई मिनट तक वह इसी आशा और भय की अवस्था में रही। यहाँ तक कि वह दल निकट आ गया और सिपाहियों के वस्त्र साफ़ नज़र आने लगे। रानी ने एक ठण्डी साँस ली, उसका शरीर तृणवत् कॉपने लगा। यह बादशाही सेना के लोग थे।

सारन्धा ने कहारों से कहा-डोली रोक लो। बुंदेला सिपाहियों ने भी तलवारें खींच ली! राजा की अवस्था बहुत शोचनीय थी, किन्तु जैसे दबी हुई आग हवा लगते ही प्रदीप्त हो जाती है, उसी प्रकार इस संकट का ज्ञान होते ही उनके जर्जर शरीर में वोशत्मा चमक उठी। वे पालकी का पर्दा उठाकर बाहर निकल पाये। धनुष्य-बाण हाथ में ले लिया। किन्तु वह धनुष जो उनके हाथ में इन्द्र का वज्र बन जाता था, इस समय जरा भी न झुका। सिर में चकर आया, पैर थर्राये, और वे धरती पर गिर पड़े। भावी अमंगल की सूचना मिल गई। उस पंखरहित पक्षी के सदृश जो साँप को अपनी तरफ आते देखकर ऊपर को रचकता और फिर गिर पड़ता है, राजा चम्पतराय फिर सँभकर उठे और फिर गिर पड़े। सारन्धा ने उन्हें सँभालकर बैठाया, और रोकर।बोलने की चेष्टा की। परन्तु मुँह से केवल इतना निकला-प्राणनाथ ! इसके आगे उसके मुँह से एक शब्द भी न निकल सका। भान पर मरनेवाली सारन्धा इस समय साधारण स्त्रियों की भाँति शक्तिहीन हो गई। लेकिन एक अंश तक यह निर्बलता स्त्री-जाति की शोभा है।

चम्पतराय बोले-“सारन, देखो हमारा एक और वीर जमीन पर गिरा। शोक ! जिस आपत्ति से यावज्जीवन डरता रहा उसने इस अन्तिम समय में आघेरा। मेरी आँखों के सामने शत्रु तुम्हारे कोमल शरीर में हाथ लगायेंगे, और,मैं जगह से हिल भी न सकूँगा। हाय ! मृत्यु, तू करायगी !” यह कहते-कहते