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रानी सारन्धा

था। पर कोई उपाय सफल न होता था। वहाँ सिपाहियों का मेला-सा लगा हुआ था।

तब सारन्धा अपने खेमे से निकली और निर्भय होकर घोड़े के पास चली गई। उसकी आँखों में प्रेम का प्रकाश था, छल का नहीं। घोड़े ने सिर मुका दिया। रानी ने उसकी गर्दन पर हाथ रखा,और वह उसकी पीठ सुहलाने लगी। घोड़े ने उसकी अञ्चल में मुँह छिपा लिया। रानी उसकी रास पकड़कर खेमे की ओर चली। घोड़ा इस तरह चुपचाप उसके पीछे चला,मानो सदैव से उसका सेवक है।

पर बहुत अच्छा होता कि धोड़े ने सारन्धा से भी निष्ठुरता की होती। यह सुन्दर घोड़ा आगे चलकर इस राज-परिवार के निमित्त स्वर्णजटित मृग साबित हुआ।

संसार एक रण क्षेत्र है। इस मैदान में उसी सेनापति को विजय लाभ होता है जो अवसर को पहचानता है। वह अवसर पर जितने उत्साह से आगे बढ़ता है,उतने ही उत्साह से आपत्ति के समय पीछे हट जाता है। वह वीर पुरुष राष्ट्र का निर्माता होता है और इतिहास उसके नाम पर यश के फूलों की वर्षा करता है।

पर इस मैदान में कभी-कभी ऐसे सिपाही भी जाते हैं जो अवसर पर क़दम बढ़ाना जानते हैं,लेकिन संकट में पीछे हटना नहीं जानते। ये रणवीर पुरुष विजय के नीति की भेंट कर देते हैं। वे अपनी सेना का नाम मिटा देंगे,किन्तु जहाँ एक बार पहुँच गये हैं,वहाँ से कदम पीछे न हटायेंगे। उनमें कोई विरला ही संसार-क्षेत्र में विजय प्राप्त करता है,किन्तु प्रायः उसकी हार विजय से भी अधिक गौरवात्मक होती है। अगर अनुभवशील सेनापति राष्ट्रों की नींव डालता है,तो भान पर भान देनेवाला,मुँह न मोड़नेवाला सिपाही राष्ट्र के भावों को उच्च करता है,और उसके हृदय पर मैतिक गौरव को अंकित कर देता है। उसे इस कार्यक्षेत्र में चाहे सफलता न हो,किन्तु जब किसी वाक्य वा सभा में उसका नाम ज़बान पर आ जाता है,तो श्रोतागण एक स्वर से उसके कीर्ति-गौरव को प्रतिध्वनि कर देते हैं। सारन्धा 'पान पर जान देनेवालों में थी।