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पछतावा

कभी अपने मालिक से बेबाक़ हो सकता है। कुछ अभी ले लिया जाय, कुछ फिर दे देंगे। हमारी गर्दन तो सरकार की मुट्ठी में है।

कुँवर साहब-आज कौड़ी कौड़ी चुकाकर यहाँ से उठने पाओगे। तुम लोग हमेशा इसी तरह हीला हवाला किया करते हो।

मलका-(विनय के साथ)-हमारा पेट है, सरकार की रोटियाँ है, हमको और क्या चाहिए जो कुछ उपज है वह सब सरकार ही की है।

कुँवर साहब से मलूका की यह वाचालता सही न गई। उन्हें इसपर क्रोष आ गया ; राजा-रईस ठहरे। उन्होंने बहुत कुछ खरी-खोटी सुनाई और कहा-कोई है ? जरा इस बुड्ढे का कान तो गरम करो, यह बहुत बढ़-चढ़कर बातें करता है। उन्होनें तो कदाचित् धमकाने की इच्छा से कहा, किन्तु चपरासी कादिर ख़ाँ ने लपककर बूढ़े की गर्दन पकड़ी और ऐसा धक्का दिया कि वेचारा जमीन पर जा गिरा। मलूका के दो जवान बेटे वहाँ चुपचाप खड़े थे। बाप की ऐसी दशा देखकर उनका रक्त गर्म हो उठा। वे दोनों झपटे और कादिर खाँ पर टूट पड़े। धमाधम शब्द सुनाई पड़ने लगा। ख़ाँ साहब का पानी उतर गया, साफ़ा अलग आ गिरा। अचकन के टुकड़े-टुकड़े हो गये। किन्तु जबान चलती रही।

मलूका ने देखा, बात बिगड़ गई। वह उठा और कादिर ख़ाँ को छुड़ाकर अपने लड़कों को गालियाँ देने लगा। जब लड़कों ने उसी को डाँटा तब दौड-कर कुँवर साहब के चरणों पर गिर पड़ा। पर बात यथार्थ में बिगड़ गई थी। बूढ़े के इस विनीत भाव का कुछ प्रभाव न हुआ। कुँवर साहब की आँखों से मानों आग के अंगारे निकल रहे थे। वे बोले-बेईमान आँखों, के सामने से दूर हो जा। नहीं तो तेरा खून पी जाऊँगा।।

बूढ़े के शरीर में रक्त तो अब वैसा न रहा था, किन्तु कुछ गर्मी अवश्य थी। समझता था कि ये कुछ न्याय करेंगे, परन्तु यह फटकार सुनकर बोला-सरकार, बुढ़ापे में आपके दरवाजे पर पानी उतर गया और तिसपर सरकार हमी को डाँटते हैं। कुँवर साहब ने कहा-तुम्हारी इज्ज़त अभी क्या उतरी है, अब उतरेगी।

दोनों लड़के सरोष बोले-सरकार अपना रुपया लेंगे कि किसी की इज्जत लेंगे?