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नव-निधि


पेश करेंगे। जिन लोगों ने उनकी वक्तृताएँ सुनी है, वे बहुत उत्सुकता से इस अवसर की प्रतीक्षा कर रहे हैं।

बैठक समाप्त होने पर जब सेठजी रामरक्षा के साथ अपने भवन पर पहुँचे तो मालूम हुआ कि आज वृद्धा स्त्री उनसे फिर मिलने आई है। सेठजी दौड़कर रामरक्षा की माँ के चरणों से लिपट गये। उनका हृदय इस समय नदी की भाँति उमड़ा हुआ था।

'रामरक्षा ऐण्ड फेंड्स' नामक चीनी बनाने का कारखाना बहुत उन्नति पर है। रामरक्षा अब भी उसी ठाट-बाट से जीवन व्यतीत कर रहे हैं। किन्तु पार्टियांँ कम देते हैं, और दिनभर में तीन से अधिक सूट नहीं बदलते। वे अब उस पत्र को जो उनकी स्त्री ने सेठजी को लिखा था, संसार की एक बहुत अमूल्य वस्तु समझते हैं और मिसेज रामरक्षा को भी अब सेठजी का नाम मिटाने की अधिक चाह नहीं है। क्योंकि अभी हाल में जब उनके लड़का पैदा हुआ था तो मिसेज रामरक्षाने अपना सुवर्ण-कंकण धाय को उपहार दिया था और मनों मिठाई बाँटी थी।

यह सब हो गया, किन्तु वह बात जो अनहोनी थी, वह न हुई । रामरक्षा की मा अब भी अयोध्या में रहती है और अपनी पुत्रवधू की सूरत नहीं देखना चाहतीं।

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