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ममता


रामरक्षा की माँ ने कहा-तुम्हारे रुपये की ज़मानत मैं करती हूँ। यह देखो, बंगाल-बंक की पास बुक है। उसमें मेरा दस हज़ार रुपया जमा है। उस रुपये से तुम रामरक्षा को कोई व्यवसाय करा दो। तुम उस दुकान के मालिक रहोगे, रामरक्षा को उसका मैनेजर बना देना। जब तक वह तुम्हारे कहे पर चते, तब तक निभाना। नहीं तो दुकान तुम्हारी है। मुझे उसमें से कुछ नहीं चाहिए। मेरी खोज-खबर लेनेवाला ईश्वर है। रामरक्षा अच्छी तरह रहे, इससे अधिक मुझे और कुछ न चाहिए, यह कहकर पासबुक सेठजी को दे दी। माँ के इस अथाह प्रेम ने सेठ जी को विह्वल कर दिया। पानी उबल पड़ा और पत्थर उसके नीचे ढक गया। जीवन में ऐसे पवित्र दृश्य देखने के कम अवसर मिलते हैं। सेठजी के हृदय में परोपकार की एक लहर-सी उठी। उनकी आँखें डबडबा आई। जिस प्रकार पानी के बहाव से कभी-कभी बाँध टूट जाता है, उसी प्रकार परोपकार की इस उमंग ने स्वार्थ और माया के बाँध को तोड़ दिया। वे पास बुक वृद्धा स्त्री को वापस देकर बोले-माता, यह अपनी किताबलो। मुझे अब अधिक न लज्जित करो। यह देखो, रामरक्षा का नाम बही से उड़ा देता हूँ ! मुझे कुछ नहीं चाहिए, मैंने अपना सब कुछ पा लिया। आज तुम्हारा रामरक्षा तुमको मिल जायगा।

इस घटना के दो वर्ष उपरान्त टाउनहाल में फिर एक बड़ा जलसा हुआ। बैंड बज रहा था। झंडियाँ और ध्वजाएँ वायु-मण्डल में लहरा रही थीं। नगर के सभी माननीय पुरुष उपस्थित थ । लैंडो, फिटन और मोटरों से अहाता भरा हुआ था। एकाएक मुश्की घोड़ों की फिटन ने अहाते में प्रवेश किया। सेठ गिरधारीलाल बहुमूल्य वस्त्रों से सजे हुए उसमें से उतरे। उनके साथ एक फैसनेबुल नवयुवक अँगरेज़ी सूट पहने मुसकुराता हुआ उतरा। ये मिस्टर रामरक्षा थे। वे अब सेठजी की एक खास दूकान के मैनेजर है। केवल मैनेजर ही नहीं, किन्तु उन मैनेजिंग प्रोप्राइटर समझना चाहिए। दिल्ली-दरबार में सेठजी को रायबहादुर का पद भी मिला है। आज डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट नियमानुसार इसकी घोषणा करेंगे और नगर के माननीय पुरुषों की ओर से सेठजी को धन्यवाद देने के लिए यह बैठक हुई है। सेठजी की ओर से धन्यवाद का वक्तव्य मिस्टर रामरक्षा