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नव-निधि


उपस्थित जनों में प्रशंशा की उच्च ध्वनि हुई।

एक दूसरे महाशय ने अपने मुहाल के वोटरों के सम्मुख अपने मुवक्किल की प्रशंसा यों की—

'मैं यह नहीं कहता कि आप सेठ गिरधारीलाल को अपना मेम्बर बनाइए। आप अपना भला-बुरा स्वयं समझते हैं, और यह भी नहीं है कि सेठजी मेरे द्वारा अपनी प्रशंसा के भूखे हों। मेरा निवेदन केवल यही है कि आप जिसे मेम्बर बनायें, पहले उसके गुणदोषों का भली भाँति परिचय ले लें। दिल्ली में केवल एक आदमी है कि जिसने पानी पहुँचाने और स्वच्छता के प्रबन्धों में हार्दिक धर्म-भाव से सहायता दी है। केवल एक पुरुष है बिसको श्रीमान् वायसराय के दरबार में कुर्सी पर बैठने का अधिकार प्राप्त है और आप सब महाशय उसे जानते हैं।

उपस्थित जनों ने तालियाँ बजाई।

सेठ गिरधारीलाल के महल्ले में उनके एक प्रतिवादी थे। नाम था मुंशी फैजुल-रहमान खाँ। बड़े जमींदार और प्रसिद्ध वकील थे। बाबू रामरक्षा ने अपनी दृढ़ता, साहस, बुद्धिमत्ता और मृदु भाषण से मुंशी साहब की सेवा करनी प्रारम्भ की। सेठजी को परास्त करने का यह अपूर्व अवसर हाथ आया। वे रात और दिन इसी धुन में लगे रहते। उनकी मीठी और रोचक बातों का प्रभाव उपस्थित जनों पर बहुत ही अच्छा पड़ता। एक बार आपने असाधारण श्रद्धा की उमंग में आकर कहा-मैं डंके की चोट कहता हूँ कि मुंशी फैजुलरहमान से अधिक योग्य आदमी आपको दिल्ली में न मिल सकेगा। यह वह आदमी है जिसकी गजलों पर कविमनों में वाह-वाह मच जाती है। ऐसे श्रेष्ठ आदमी की सहायता करना मैं अपना जातीय और सामानिक धर्म समझता हूँ। अत्यन्त शोक का विषय है कि बहुत-से लोग इस भातीय और पवित्र काम को व्यक्तिगत लाभ का साधन बना लेते हैं। धन और वस्तु है, श्रीमान् वायसराय के दरबार में प्रतिष्ठित होना और वस्तु। किन्तु सामाजिक सेवा, भातीय चाकरी और ही चीज है। और वह मनुष्य जिसका जीवन ब्याज-प्राप्ति, बेईमानी, कठोरता तथा निर्दयता और सुख-विलास में व्यतीत होता हो, वह इस सेवा के योग्य कदापि नहीं है।