यह पृष्ठ प्रमाणित है।
१००
नव-निधि


मान बायगा। किन्तु यह कष्टप्रद कार्य होगा कैसे ! ज्यों-ज्यो प्रातःकाल समीप आता था, त्यों-त्यों उनका दिल बैठा जाता था। कच्चे विद्यार्थी की मो दशा परीक्षा के सन्निकट आने पर होती है, वही हाल इस समय रामरक्षा का था। वे पलँग से न उठे। मुँह-हाथ भी न बोया, खाने को कौन कहे। इतना जानते थे कि दुःख पड़ने पर कोई किसी का साथी नहीं होता, इसलिए एक आपत्ति से बचने के लिए कहीं कई आपत्तियों का बोझा न उठाना पड़े। मित्रों को इन मामलों की ख़बर तक न दी। मब दोपहर हो गया और उनकी दशा ज्यों-की-त्यों रही तो उनका छोटा लड़का बुलाने पाया। उसने बाप का हाथ पकड़कर कहा- सालाजी, आज काने क्यों नहीं तलते ?

रामरक्षा- भूख नहीं है।

क्या काया है?

मन की मिठाई।

और क्या काया है।

मार।

किसने मारा।

गिरधारीलाल ने।

बड़का रोता हुआ घर में गया और इस मार की चोट से देर तक रोता रहा। अन्त में तश्तरी में रखी हुई दूध की मलाई ने उसकी इस चोट पर मरहम का काम किया।

रोगी को जब जीने की प्राण नहीं रहती तो औषधि छोड़ देता है। मिस्टर रामरक्षा जब इस गुत्थी को न सुलझा सके, तो चादर तान ली और मुँह लपेट-कर सो रहे। शाम को एकाएक उठकर सेठजी के यहाँ जा पहुंचे और कुछ असावधानी से बोले-महाशय, मैं आपका हिसाब नहीं कर सकता।

सेठजी घबराकर बोले-क्यों ?

रामरक्षा-इसलिए कि मैं इस समय दरिद्र हूँ। मेरे पास एक कौड़ी भी नहीं है। आप अपना रुपया जैसे चाहे, वसूल कर ले।