अब इस सम्प्रदाय की धार्मिक पुस्तको के विचार और बाते सुनिए। सिद्धान्त रहस्य में लिखा है—
"गुरु को तन, मन, धन अर्पण करना। ये वस्तु समर्पण करने से ब्रह्मरूप हो जाती है। और उन वस्तुओं के उपभोग से फिर ५ प्रकार का दोष नहीं लगता।"
"सढ़सठ अपराध" नाम की पुस्तक में लिखा है—
१—वैष्णव होकर जो अवैष्णव को सम्मान करे, तो तीन जन्म तक चमार बने।
२—जो कोई गुरु और भगवान् में भेद रखे, वह पक्षी हो।
३—जो गुरु की आज्ञा उल्लंघन करे। वह असिपात्र नर्क में जाय, और उसकी समस्त सेवा नष्ट हो।
४—जो अपने गुरुकी गुप्त बात ज़ाहिर करे, वह तीन जन्म तक कुत्ता हो।
अष्टाक्षर टीका में लिखा है—देखो श्री गोसाईं जी कैसे हैं। उन्हें किसी वस्तु की इच्छा नहीं। उन्हें कुछ गर्ज नहीं। उनकी सर्व इच्छा पूर्ण हुई है। वे सब गुणों से भरपूर हैं। वे स्वयं ईश्वर हैं। सब अवतारो में मुख्य हैं। करोड़ो कामदेवो के समान सुन्दर हैं। सद्गुणों से परिपूर्ण और रसिकशिरोमणि हैं। भक्तों की मनोकामना पूर्ण करनेवाले हैं। करोड़ो जगत में उनकी कीर्ति व्याप्त है।.... .ब्रह्मा, शिव, इन्द्र उनकी स्तुति करते हैं।
'गुरु सेवा' पुस्तक मे लिखा है—