पृष्ठ:धर्म के नाम पर.djvu/९४

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भाव नहीं है। तन्त्र ग्रन्थो में इस सम्बन्ध में बहुत ही कुत्सित बातो का वर्णन किया गया है। 'शिव उवाच' 'पार्वत्युवाच' 'भैरव उवाच' इत्यादि नाम लिख कर सर्वथा नीति, धर्म और सभ्यता से हीन बातें लिखी गई है। कालीतन्त्र में लिखा है :—

मद्यं मांसं च मीनं च मुद्रा मैथुनमेव च।
एते पंच मकारा स्युर्मोक्षदाहि युगे युगे॥

अर्थात्—मद्य, मांस, मछली, मुद्रा (पूरी कचौरी बड़े) और मैथुन ये पांच मकार युग युग में मोक्ष देने वाले हैं। कुलार्णव तन्त्र में लिखा है :—

प्रवृत्ते भैरवी चक्रे 'सर्वे वर्णा द्विजातयः।
निवृत्त भैरवी चके सर्वे वर्णा पृथक् पृथक्॥

अर्थात्—भैरवी चक्र में प्रवेश होने पर सब वर्ण द्विजाति हैं। भैरवी चक्र से बाहर सब पृथक् पृथक् हैं। ज्ञानसंकलनी तन्त्र में लिखा है:—

"मातृयोनिं परित्यज्य, विहरेत सर्वे योनिषु।
वेदशास्त्र पुराणानि, सामान्यगणिका इव॥"
"एकैव शाम्भवी मुद्रा गुप्ता कुलवधूरिव।
अहं भैरवस्त्वं भैरवी ह्यावयोरस्तु संगमः।

अर्थात्मा—माता की योनि को छोड़ कर सब योनियों में विहार करे, वेदशास्त्र मामूली वेश्या के समान है। सिर्फ अकेली शम्भु मुद्रा ही कुलवधू की तरह गुप्त है।