पृष्ठ:धर्म के नाम पर.djvu/८२

यह पृष्ठ प्रमाणित है।
(८२)

शतपथ ब्राह्मण में इस विषय में एक मनोहर विवाद है कि पुरोहित को बैल का मांस खाना चाहिये या गाय का। अन्त परिणाम निकाला गया है कि दोनों ही मांस न खाने चाहिए। परन्तु याज्ञवल्क्य हठ पूर्वक कहते हैं! 'यदि वह नर्म हो तो हम उसे खा सकते हैं[१]।"

इस पवित्र मांस भक्षण का प्रभाव उपनिषदो तक में हो गया। बृहदारण्यक उपनिषद् मे लिखा है कि जो कोई यह चाहे कि मेरा पुत्र विद्वान् , विजयी और सर्व वेदों का ज्ञाता हो-वह बैल का मांस चावल के साथ पकाकर घी डालकर खाया[२]


रथ्यास्त्री ब्रह्मणो वस्स कथ्य, ब्रह्माच्छासित उरु पोतुः सव्या श्रोणिहोंतुर-परसक्थं मैत्रावरुणस्योऊरच्छ्वाकस्य, दक्षिणादौनेष्ट. सव्यान्सदस्यस्य सदंचानक च गृहपतेर्जाघी पत्नायस्तासां ब्राह्मणे न प्रति ग्राहयति, वतिष्टुहृर्दयं वृक्कौ चांगुल्यानि दक्षिणो बाहुरर्गिनधस्य सव्य आत्रेयस्य दक्षिणी पादौ। गृहपतेवृंतपदस्य, सन्यौपादौ गृहपत्न्या वृतप्रदायाः (गोपथ बा॰ ३॥ १८॥)

  1. सधेन्वै चानहुहुश्नाश्नीयाद्वे नवनडुहौ वह इद सर्व विश्नतस्ते देवा अबवन् देश वनडुहौ वा इद सर्व विभ्रतो हन्त यदन्वेषां वयासावीर्य तद्धेन वनडुहयोर्दधोमेति तद्रहो वाच याज्ञ वल्क्य। श्नाम्येवाहमा सलचेन्द्रवतीति। (श॰ ३। २। २। २१)
  2. अथ य इच्छते् पुत्रों में पण्डितो विजिगीत समितिगम: सुश्रुवितावाचं भाषित जायते सर्वान्वेदाननुव्रवीत सर्वमायुग्यिदिति मां सौदनीं पाश्चयित्वा सर्पिष्मन्त मश्नियातमीश्वरो जनयीत वा औषणन वा विष्भेण वा (वृह॰ उ॰ ८। ४। १८)।