था कि खड़े मनुष्य के गर्दन तक आता था। उसी के सामने एक काष्ट का यूप गढ़ा था जिसमें एक गढ़ा इस भाँति किया गया था कि उसमे पशुकी गर्दन आसानी से आ सके। गर्दन फंसाकर एक छिद्र द्वारा लोहे के एक सींखचे से उसे अटका दिया जाता था।चबूतरे पर एक आदमी हाथ में एक छींका जैसी वस्तु रस्सी के सहारे पकड़े खड़ा था। बधिक ब्राह्मण था, और वह स्नान कर तिलक छाप लगाये स्वच्छ जनेऊ पहिने हाथ में खांडा लिए खड़ा था। प्रत्येक जीव की हत्या करने की उसकी फीस एक आना थी। इकन्नियों की उस पर वर्षा हो रही थी, उसने अपनी धोती में एक पोटली बाँध रक्खी थी जिसमे वह उन इकन्नियों को डाल रहा था। लोग अपने अपने पशुओं को कोई धकेल कर, कोई कन्धे पर, कोई रस्सी द्वारा खींचकर और कोई मारता हुआ ला रहा था। मैंने भली भाँति से देखा—कि प्रत्येक पशु अपनी असल मृत्यु को समझ रहा था और वह भय से कम्पित और अश्रुपूरित था। सब पशु, आर्तनाद कर रहे थे। कटे हुये सिरो के ढेर और फड़कती हुई लाशों को देख के मूर्छित से होकर गिरे पड़ते थे। प्रत्येक आदमी की इच्छा पहिले अपना पशु कटाने की थी और प्रत्येक व्यक्ति आगे बढ़कर अपनी इकन्नी बधिक के हाथ में थंभा देना चाहता था। वधिक इकन्नी टेट मे रखता और पशु के स्वामी पशु को यूप के पास धकेलते, बधिक का सहायक फुर्ती से उसकी गर्दन यूप में फंसाकर यूप के छेद में लोहे का सरिया डालता और छींका उसके मुख पर लगा देता।
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