मुसलमानों ने मुलतान, मलावार, अजमेर, सहारनपुर, दिल्ली, गोंडा, कोहाट आदि स्थानों में हिन्दुओं पर अत्याचार किये हैं।
जहाद की युद्ध यात्रायें करनी इस्लाम धर्म की धार्मिक आज्ञाये हैं। सूरावकर में लिखा है—"जो मुसलमान जहाद में मारा जाय उसे मुर्दा न समझना चाहिये, सूरानिसा में लिखा है—"काफिरों को मित्र मत बनाओ और यदि वे मुसलमान न हो जायं तो उन्हें मार डालो।" सूरावकर में एक स्थान पर लिखा है—"जिस जगह काफिर को देखो मार डालो और उसे घर से निकाल दो।"
प्राचीन भारत के धर्म संघर्ष पर भी एक दृष्टि डालिये। बुद्ध की मृत्यु के ढाई सौ वर्ष के अन्दर उस समय के हिन्दू धर्म को भारत से निकालकर वौद्धों ने अपना एकाधिकार कर लिया था। परन्तु पुरोहितों की ओर से बराबर उनके विपरीत विद्रोह की आग सुलगती ही रही। धीरे धीरे प्रतिमा पूजन हिन्दू और बौद्ध दोनों में प्रचलित हुआ, फिर वैष्णव, शैव, शाक्त सम्प्रदाय बढ़े और सबने मिलकर बौद्ध धर्म को निकाल बाहर किया। अपने काल में बौद्धों ने बड़े बड़े भयानक अत्याचार किये थे। बल पूर्वक नागरिकों की सम्पदा वे हरण करते, उनके उत्तराधिकारियों को भिक्षु बनाते और न जाने क्या क्या अन्धेर करते थे। अन्त में हिन्दुओं ने बौद्धों को नगर से बाहर मरघटो में रहने को विवश किया। और पुरोहितों और पण्डो के अत्याचार पूर्ण जीव फिर उत्पन्न होगये।