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थकित हुआ तो उसने रोम के निवासियों के लिये सुख और आरोग्य का आशीर्वाद मांगा और सदा के लिये मृत्यु की गोद में सो गया।

इसी वर्ष कैसरिया नगर में कूरिल नामक एक छोटा-सा बालक रहता था। वह ईसा का नाम नित्य लेता था। इस के लिये उसके साथी लड़कों ने मारा, बाप ने घर से निकाल दिया, अन्त में वह रोम के न्यायाधीश के पास पहुँचाया गया। न्यायाधीश ने उसे समझा कर कहा—"बच्चे, तू बड़ा सुकुमार है, तू यह कैसा पाप करता है कि मसीह का नाम लेता है? उसे छोड़ दे मैं तुझे तेरे बाप के पास भेज दूंगा और समय पर तू उसकी अतुल सम्पत्ति का अधिकारी बनेगा।"

परन्तु बालक ने तेज-पूर्ण स्वर में कहा—"आपकी इस कृपा के लिये धन्यवाद! पर मैं परमेश्वर के नाम पर कष्ट भोगने में सुखी हूँ, प्रभु मसीह ने भी कष्ट भोगे हैं, मुझे घर से मोह नहीं है, क्योंकि मेरे प्रभु का घर इससे उत्तम है और न मुझे मरने का डर है, क्योंकि प्रभु का उपदेश है कि मृत्यु ही उत्तम जीवन देता है।"

न्यायाधीश उसके उत्तर से दङ्ग हो गया। उसने डराने के लिये उसे वध-स्थल पर ले जाने की आज्ञा दी। न्यायाधीश को आशा थी कि बालक भयङ्कर आग को देख कर डर जायगा। पर जब वह लौट कर भी वैसा ही सतेज और निर्भीक चना रहा तो न्यायाधीश बड़े विचार में पड़ा। वह दया-वश उसे मारना