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धार्मिक अत्याचारों को मेरे विचार में ईसाइयों ने सबसे अधिक धैर्य और साहस के सहन किया है। ईसाइयों पर अत्याचार के पहाड़ टूट पड़े थे। सर्वप्रथम तो ईसा की मृत्यु के बाद यहूदियों ने और नीरों बादशाह ने उन्हे बड़े बड़े कष्ट दिये। इसके बाद जब प्रोटेस्टेन्ट सम्प्रदाय चला—तब पोपों ने उन्हे भयानक कष्ट दिये। यहाँ पाठको की जानकारी के लिये हम उन अत्याचारों का संक्षेप में दिग्दर्शन करते हैं।

ईसा मसीह के चरणों में आज आधी दुनिया है। इन के समय में बड़े विद्वत्तापूर्ण तात्त्विक लेखक नहीं थे। मसीह के पास न तलवार थी, न विद्या थी, केवल एक आत्मबल था। उनका उपदेश प्रेम का था। वे कहते थे कि एक परमेश्वर ही सर्वोपरि है। उस ज़माने में मूर्ति पूजा का प्रावल्य था। पर मसीह ने शान्ति पूर्वक प्रचार किया कि ये पत्थर की प्रतिमाएं कदापि ईश्वर नहीं हैं। राजा और प्रजा के विरुद्ध यह आवाज़ थी। हजारों वर्ष के अन्धविश्वास के विरुद्ध यह घोषणा थी। इसके बदले में मसीह को अनेक कष्ट दिये गये, उसे पापी और विधर्मी कह तिरस्कृत किया गया। पर वह शान्ति, धर्म और सत्य की मूर्ति था। उसने अलौकिक धैर्य के साथ अत्याचार का मुकाबला किया। उसे तख्तों पर लटका कर उसके हाथ पावों में लोहे के कीले ठोक दिये गये और वह भगवान् से उन अत्याचारियों के लिये क्षमा माँगता हुआ शान्ति पूर्वक मृत्यु को प्राप्त हुआ। उसने केवल ढाई वर्ष उपदेश किया।