उसी दशा में रह कर मर गये। हमने उन्हें देखा था। यह दशा थी—जहाँ खड़ा करदो जड़वत् खड़े रहते थे। और जिधर उनका कोई अड्ग करदो वैसा ही बना रहता था। बहुधा लोग उनके मुंह में लड्डू दे देते थे। वह घन्टो वैसा ही धरा रहता था। लोग उन्हें सिद्ध समझ कर पूजा करते थे।
अन्धविश्वास और कुसंस्कारों ने ही करोड़ों हिन्दुओं को मूर्त्ति पूजा के कुकर्म में फांस रक्खा है। पढ़ लिखकर भी, समझदार होकर भी वे उस से विमुख नहीं हो सकते। बहुत लोग स्वप्नों पर बड़ा विचार किया करते हैं। अमुक स्वप्न देखने से अमुक फल होगा। एक बार राजा जमोरिन ने एक स्वप्न देखा। कि चन्द्रमा के दो टुकड़े हो गये हैं—राजा ने उसका अर्थ दर्बारियों से पूंछा, परन्तु वे ठीक ठीक उत्तर न दे सके। उन्हीं दिनों कोई अरब के व्यापारी वहाँ आये थे। राजा ने उनसे भी स्वप्न का हाल कहा—उसने अंट संट बता दिया। राजा मुसलमान हो गया। और उसके वंशधर आज भी मोपला हैं।
स्वप्नों की चर्चा महाभारत, भागवत, पुराण आदि में बहुत है। कुछ ऐसी कथाएं भी हैं कि स्वप्न में देखी स्त्रियों से और स्थानों से जागृत होकर भी कुछ राजा मिल सके हैं। वीर विक्रमादित्य की कहानियों में इस प्रकार की बातों का खूब उल्लेख है। फलतः पढ़ने वालों पर उसका बुरा प्रभाव पड़ता है।
शकुन भी अन्धविश्वास की खास चीज़ है। मुगल बादशाहों को शकुन देखने का ख़ब्त सवार था। वे बिना