यहाँ योगशास्त्र पर मैं और भी गम्भीर दृष्टि डालूंगा। प्रथमतो यह विचारना चाहिये कि योगशास्त्र का निर्माता पतञ्जलि ऋषि कोई अति प्रसिद्ध बड़ा भारी ऋषि नहीं। उसका जन्म पाणिनी के पीछे का है क्योंकि उसने पाणिनी की अष्टाध्यायी पर भाष्य किया है। पाणिनी का जन्म काल मसीह से ३०० वर्ष पूर्व के लगभग है। यह वह समय था जब देश के धर्म में अन्धकार की भावना फैल गई थी। और ब्राह्मणों का देश में जोर था, बड़े बड़े यज्ञ होते थे। अनुष्ठानों और क्रियाओं का बड़ा महत्त्व था। यूनानी लोगों का भारत में नया संस्पर्श हुआ था। और उनसे भारतीयों ने अद्भुत अद्भुत देवताओं, घटनाओं और आश्चर्य की बातें सुनी थीं। पतञ्जलि ने इन सब को हृदयंगम किया और योग-दर्शन लिखा। पतञ्जलि स्वयं योग का ज्ञाता था और उसे वे सारी सिद्धियाँ आती थीं, इसका कुछ भी प्रमाण देखने को नहीं मिलता। न इस बात का ही कोई प्रमाण हमें देखने को मिलता है कि पतञ्जलि से पूर्व किसी भी ऋषि ने इस प्रकार की सिद्धियों की चर्चा की हो, या उन्हें सम्भव माना हो। वास्तव में वह एक रहस्य पूर्ण ढङ्ग से लिखी हुई एक और ही उद्देश्य की पूर्ति की पुस्तक है। उस का उद्देश्य केवल सांख्य के बुद्धिगम्य विषयों को अनुभविक ढङ्ग से व्यक्त करना था। जो चमत्कारिक तो था, व्यवहारिक नहीं।
इस योग-दर्शन के निर्माण के बाद पैशाची भाषा के कुछ ग्रंन्थों में, जिनका मूल उद्गम भी मध्य ऐशिया की जातियों के