कि उनका धर्म राजनैतिक धर्म हो गया था और उन्हें राज्य की सहायताएं प्राप्त हो गई थीं। इन दिनों पशुओ के बलिदान भी होते थे।
उन दिनों सिकन्दरिया में हिमैशिया एक प्रसिद्ध तात्त्विक स्त्री रहती थी। उसने अफलातून और अरस्तू के सिद्धान्तो की बड़ी गहन विवेचना की थी और रेखागणित में बड़ी योग्यता प्राप्त की थी—उसके घर के सामने उसकी व्याख्या सुनने को ऐलेग्जेन्ड्रिया के अनेक धनीमानी सदैव ही बसे रहते थे। उस विदुषी को साइरिल नामक पादरी ने अपने मठवासी लोगों की सहायता से सड़क पर पकड़ लिया, उसे नंगी करके वे गिरजे में ले गये और वहाँ वह पीरदी रीडर के लठ से वह मार डाली गई। और उसकी लाश के टुकड़े २ करके उसका मांस सीपियों से खुरोचकर आग में डाल दिया गया। इस भयानक हत्या का उस पादरी से कोई जवाब नहीं तलब किया गया।
इस घटना के बाद यूनान का रहा सहा तत्त्वज्ञान भी सदा को सो गया। और यह घोषणा कर दी गई कि प्रत्येक मनुष्य वैसे ही विचार रक्खे जैसे सन् ४१४ में पादरी ने वर्णन किये हैं।
इसी समय एक अंग्रेज़ सन्त पश्चिमी योरोप और उत्तरी अफ्रीका में घूम रहा था। उसका नाम पिलैजियस था, उसने प्रचार किया कि मनुष्य की मृत्यु आदम के पाप के कारण ही नहीं होती जैसा कि बाइबिल में लिखा है—प्रत्युत् वह अवश्य