ऐसे ही समय सिकन्दर का जन्म हुआ। वह एक साधारण राज्य के अधिपति का पुत्र था, पहिले ही धावे में उसने थीव्स को विजय किया और ६ हज़ार निवासियों को मरवा डाला और ३० हज़ार को गुलाम बना कर बेच डाला। इस से उस की धाक बंध गई। फिर वह एशिया की ओर बढ़ा। उस के साथ ३४ हजार पैदल और ४ हज़ार सवार और ७०) रुपये थे। उसने फारिस की असंख्य सेना पर आक्रमण किया और एशिया-माइनर दख़ल कर लिया, वहाँ का अटूट ख़ज़ाना भी उसके हाथ लगा। फारिस का शाह दारा ६ लाख फौज लेकर सामने आया। पर वह हारा और उस के १ लाख सिपाही खेत रहे। इस प्रकार वह एशिया को फतह कर भूमध्य सागर की ओर बढ़ा, रास्ते के सब राज्य उसने विजय कर लिये। और समुद्र के सम्पूर्णतट स्वाधीन कर लिये। मिश्र भी उसने जय कर लिया। सिकन्दर भी अन्धविश्वास का दास था—यहाँ से वह जूपीटर-एमन के दर्शनों को गया जो वहां से दो सौ मील दूर लीविया के बलुए मैदान में था। वहाँ के देवता ने उसे देवता का पुत्र बताया जिस ने सर्प के वेष में उसकी माता को धोखा दिया था। निर्दोष गर्भ धारण और देवी देवताओं की प्रथा उन दिनों ऐसी प्रबल थी कि जो असाधारण काम करता था, अवतार समझा जाता था। यहाँ तक कि रोम में, कई शताब्दियों तक कोई यह कहने का साहस नही कर सकता था कि उस नगर के स्थापक 'रोम्युलस' की उत्पत्ति मंगल और रोसिलविया के