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उत्तर भारत के श्रेष्ठ चिकित्सक और महान् ग्रन्थकार—
आचार्य श्रीचतुरसेन शास्त्री के––
१० वर्ष के दुर्धर्ष परिश्रम का अमर फल।
आरोग्य-शास्त्र

२० अध्याय। २५० प्रकरण। १५०० से अधिक विषय। ४०० के लगभग इकरङ्गे तथा बहुरङ्ग मूल्यवान् चित्र। ८०० से ऊपर बड़े २ (२०×३०=८) पृष्ठ। उत्कृष्ट दुरङ्गी छपाई। क़ीमती मजबूत, देशी आवइराफिनिश काग़ज़। पक्की, सुनहरी कारीगरी की बढ़िया जिल्द। पचासों वर्ष तक ग्रन्थ नहीं नष्ट होगा। न काग़ज़ में कीड़ा लगेगा।

ग्रन्थ का प्रत्येक अक्षर

प्रत्येक सद्‌गृहस्थ के लिए प्राणों से बढ़कर कीमती है। एक एक बात हज़ारों रुपयों के काम की है। सैंकड़ों बार पढ़ने पर भी ग्रन्थ सदैव आपको पढ़ना पड़ेगा।

गत १०० वर्षों में

इसकी टक्कर का कोई ग्रन्थ हिन्दुस्तान की किसी भाषा में नहीं निकला। यह ग्रन्थ हिन्दुस्तान की ६ भाषाओं में अनुवाद किया जा रहा है। तथा भारत के भिन्न भिन्न प्रान्तों के शिक्षा विभागों ने स्कूलों, कालिजों, और लायब्रेरियों के लिये स्वीकार किया है। मूल्य बारह रुपये।

इन्द्रप्रस्थ पुस्तक भण्डार,

दरीबा कलां, देहली।