कर सकते हैं। मनुष्य का साधारण ज्ञान हमें बताता है कि दुनिया कैसी है—परन्तु नीति हमें यह बताती है कि वह कैसी होनी चाहिये। और धर्म हमें उस लक्ष्य तक पहुँचाता है।
मनुष्य को उचित है कि वह शरीर, मन और मस्तिष्क की अलग २ जाँच करे। वह इस बात पर भी ग़ौर करे कि अन्याय, स्वार्थ, दुष्टता और अभिमान के क्या परिणाम होते हैं। यदि मनुष्य धर्म और नीति को संयुक्त करके विचारों का एक नक़शा (प्लान) तैयार कर ले और फिर उन पर वह अमल करे तो वह सही उतरेगा। नक़शा बताता है कि घर कैसा बनेगा, घर बन जाने पर नक़शा व्यर्थ है। इसी प्रकार नीति और धर्म के विपरीत आचरण करके नीति पर विचार करना व्यर्थ है।
नीति का नियम यह है कि हमारे अनुभव में जो सचाईयाँ आती जायँ उनके आधार पर हम अपने आचरणों को बनाते जायँ। जो मार्ग सच्चा है, वह चाहे बिल्कुल ही नया और अपरिचित क्यों न हो हमें उसे ग्रहण ही करना चाहिए। इसका यह अर्थ है कि हमें कट्टरता के सभी विचार त्याग देने चाहिए। और कट्टरता को जो आज कल के धर्मों का प्रधान लक्षण है, नीति मूलक धर्म का सबसे बड़ा दुश्मन समझना चाहिए।
उत्तम धर्म नीति क्या है—इस पर विचार करना भी आवश्यक है। अमुक कार्य से हमारा यह लाभ हो सकता है, परन्तु यह आवश्यक नहीं कि वह धर्मनीति से पूर्ण है। और इसी प्रकार धर्मनीति के कार्य के लिये यह आवश्यक नहीं कि वह लाभदायक