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दशवां अध्याय

धर्म नीति

जिस काम में विचार शक्ति को काम में न लाया जाय वह काम बेवकूफी में दाखिल है। आजकल प्रायः संसार भर के धर्म बेवकूफी ही कहलाए जा सकते हैं। क्योंकि प्रायः सर्वत्र ही यह कहा जाता है कि धर्म के काम में अक्ल को दख़ल नहीं है। परन्तु मैं यह जानना चाहता हूँ कि धर्म के काम में अक्ल को दख़ल क्यों नहीं है। धर्म क्यों इतना बेसिर पैर की चीज़ है, क्यों युक्ति और नीति रहित है कि उस में सोचने विचारने से पाप लगता है।

मैं यह कहता हूँ कि मस्तिष्क की सम्पूर्ण शक्ति का यदि कहीं पर उपयोग हो सकता है—तो वह धर्म ही है। धर्म ही को गीता ने कर्म कह कर पुकारा है। कौन काम कर्म है, कौन नहीं—गीता कहती है कि यह निर्णय करने में बड़े २ धुरन्धर शास्त्री विद्वान् भी मोहित हो जाते हैं।