करते हैं। और ख़ूब माल मलीदे उड़ाते हैं। एक अंग्रेज़ यात्री ने इन्हें 'इटेलियन-स्टेलियन' कहा है। यह वास्तव में नरों में सांड हैं। वे अपने को 'अहं ब्रह्मास्मि' कहते हुये अपने ही समान सबको ब्रह्म ही समझने लगते हैं। वे प्रायः अपने शिष्यों को सदा यही उपदेश देते हैं 'ब्रह्मनी ब्रह्म लग्नम्'। और वे आँख के अन्धे गांठ के पूरे 'हरेनमः बापजी' कह देते हैं। मौका पाकर ये ब्रह्मनी से ब्रह्म का सचमुच लग्नम् कर देते हैं। एकबार गुरुदेव की एक ब्रह्मनी (चेली) पर उनके एक ब्रह्म ने ऐसा ही कुछ अनुभव कर डाला—इस पर गुरू ने फटकार कर कहा—अरे पापी, यह क्या किया? उसने कहा—महाराज मैंने तो ब्रह्म से ब्रह्म मिलाया, यह तो पाप नहीं। गुरूजी ताव पेंच खाकर चुप रहे। अवसर पा उन्होंने भी चेले की स्त्री को एक दिन गुरुमन्त्र का अभ्यास करा दिया। परन्तु शिष्य भी पहुँच गये और लगे गुरू की जूती से पूजा करने। गुरूजी जब हाय तोबा करने लगे तो शिष्य ने कहा—'महाराज, चर्मनी चर्म लग्नम्। ब्रह्मनी लग्नम् किम्?' अर्थात् चमड़े से चमड़ा लगा ब्रह्म को क्या लगा—वह क्यों रोता चिल्लाता है?
गांजा, सुलफा, भंग, चरस आदि का पीना इनका धर्म है। और गालियाँ बकना इनका स्वभाव। इनके द्वारा जो जो अनर्थ और अपराध समाज में किये जाते हैं उनका वर्णन हम स्थान स्थान पर इस पुस्तक में कर चुके हैं।
अब तीसरे दर्जे़ के पाखण्डियों की सुनिये। ये जोशी