मूर्तियां बनी हैं—कहीं ऋषियों या देवताओं की मूर्तियां हैं। इन सबके चारों ओर ताम्बे का सुनहला आमलक फल है इसके निकट ही महाबोधि संघाराम की बड़ी इमारत है। जिसे लंका के राजा ने बनवाया है। उसकी ६ दीवारें तथा तीन खण्ड ऊंचे बुर्ज हैं। इसके चारो ओर ३०|४० फिट ऊंची सफील है। ...इसमें शिल्प की बहुत भारी कला ख़र्च की गई है। बुद्ध की सोने चांदी की मूर्तियाँ हैं और उन में रत्न जड़े हैं। वर्षा ऋतु में यहाँ बौद्धों का भारी मेला लगता है लाखों मनुष्य आते और, दिन रात उत्सव मनाते हैं।"
इसने नालंद विश्वविद्यालय में कामरूप के राजा के साथ कुछ दिन व्यतीत किये थे। और बड़े २ विद्वानों से इसने बात चीत की थी। मुंगेर और पूर्वी बिहार में तथा उत्तरी बंगाल में बौद्धों और हिन्दुओं के संघाराम और मन्दिर दोनों ही देखे। फिर वह आसाम, मनीपुर, सिलहट आदि में आया जहां हिन्दुओं के बहुत से मन्दिर बन गये थे। और बौद्धों का बहुत कुछ ह्रास होगया था।
यहां उसने एक भी संघाराम नहीं देखा। ताम्रलिप्त राज्य जो आजकल मिदनापुर के आस पास है बौद्धों के सङ्घाराम जहां तहां देखे। कर्ण सुवर्ण (मुरशिदाबाद) में उसने बौद्धों और हिंदुओं दोनों को देखा था। उड़ीसा में उसने बौद्धों के १०० सङ्घाराम तथा १० हजार भिक्षु देखे थे। पुरी का मन्दिर नहीं बना था, पर वहां १० मन्दिर हिन्दुओं के बन गये थे और यह स्थान बौद्धों की