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बौद्धों के १० संघाराम और ३००० जन अर्हत देखे थे। हिन्दू भी बहुत थे। इलाहाबाद में उसने कट्टर हिन्दू देखे थे। और संगम पर सैकड़ों मनुष्यों को स्वर्ग पाने की इच्छा से मरते देखा था।

वह कहता है कि नदी के बीच में एक ऊँचा स्तम्भ था। लोग इस पर चढ़ कर डूबते सूर्य को देखने जाते थे। श्रावस्ती, कौशाम्बी और काशी में भी उस ने हिन्दुओं का ज़ोर देखा था। काशी में उसने ३० सन्घाराम और ३००० भिक्षुओं को देखा था। साथ ही सौ मन्दिर और दस हज़ार मनुष्य पुजारी देखे थे। यहाँ भी सिर्फ महेश्वर की पूजा होती थी। महेश्वर की ताम्बे की मूर्त्ति सौ फीट ऊँची थी और वह इतनी गम्भीर और तेज पूर्ण थी कि जीवित जान पड़ती थी।

काशी में, एक विहार में एक कदे आदम बुद्ध मूर्त्ति भी इस यात्री ने देखी थी। वैशाली में उसने सङ्घरामों को खण्डहर देखा था और बहुत कम भिक्षुक वहाँ रहते थे—देव मन्दिर बहुत बन गये थे। मगध में उस ने पचास सङ्घाराम देखे जिन में दस हज़ार भिक्षु रहते थे। यहाँ दस हिन्दुओं के मन्दिर थे। पाटलीपुत्र इस के समय में उजड़ गया था। गया में उस ने ब्राह्मणों के हज़ार घर देखे थे। गया के बोधि वृक्ष और विहार की चढ़ी-बढ़ी शोभा इस यात्री ने देखी थी। वह लिखता है:—

"यह १६० या १७० फीट ऊँचा है। और बहुत सुन्दर बेल बूटों का काम इस पर हुआ है। कहीं तो मोतियों से गुथी हुई