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का मरे पति के नाम पर बैठी रोया करना धर्म है। उस धर्म की हम चर्चा नहीं करते। धर्मशास्त्रों में धर्म की कैसी व्याख्या है, इस पर थोड़ा प्रकाश डालना चाहते हैं।
मनुस्मृति कहती है कि धीरज, क्षमा, दम, अस्तेय, शौच, इन्द्रिय-निग्रह, बुद्धि, विद्या, सत्य, अक्रोध ये धर्म के १० लक्षण हैं। इन दशो में सिपाही का धर्म हिंसा तो नहीं आया? इस में सत्यासत्य की व्याख्या भी नहीं की गई। अब इस श्लोक में वर्णित लक्षणों को बुद्धि की कसौटी पर कस कर हम देखते हैं।
सब से प्रथम सत्य को लीजिये। सत्य धर्म का लक्षण है। मैं सत्य बोलने का व्रत लेता हूँ। मेरे पास १० हज़ार रुपये ज़मीन में अत्यन्त गोपनीय तौर पर गड़े हैं, उसका पता चलना भी सम्भव नहीं। हज़ार पांच सौ ऊपर भी मेरे पास हैं। एक दिन चोर ने गला आ दबाया। कहा "जो है रख दो, वरना अभी छुरा कलेजेके पार है।" अब आप कहिये क्या मुझे सत्य कह देना चाहिये कि इतना यह रहा और १० हज़ार यहाँ ज़मीन में गड़ा है? मेरी राय में ऐसा सत्य महामूर्खता का लक्षण होना चाहिये। जब दुर्योधन की मृत्यु का समाचार धृतराष्ट्र ने सुना, तो उन्हीं ने पूंछा—वह भीम कैसा बली है जिस ने मेरे बेटे दुर्योधन को मार डाला, उसे मेरे सन्मुख लाओ, मैं उसे छाती से लगा कर प्यार करूंगा। तब कृष्ण ने उन के सामने लोहे की मूर्ति सरका दी, जिसे बलपूर्वक इस भाँति अन्धे धृतराष्ट्र ने मसल डाला कि सचमुच यदि भीमसेन उनके हाथ में चढ़ गये होते तो उन की चटनी