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बड़े घरों में हमें जाने का बहुधा अवसर मिलता रहता है। एक प्रतिष्ठित ज़मींदार के घर का हाल सुनिये।

मकान की दूसरी मंजिल पर एक कमरा लगभग १२×९ फ़ीट था। तीन तरफ सपाट दीवारें और सिर्फ एक तरफ एक दरवाज़ा है जो कि एक लम्बी गेलरी में है। कमरे में सदैव ही अन्धकार रहता है। इसमें एक पुरानी दरी का फर्श पड़ा है। जो शायद साल में एकाध बार ही झाड़ा जाता है। दीवारें काली होगई हैं। और उसमें सदैव ही दुर्गन्ध भरी रहती है। घर भर की स्त्रियाँ इसी में दिन भर बैठी रहती हैं। और भाँति भाँति की बातें करती हैं। घर की बूढ़ी गृहणी वहीं पीढ़ी पर बैठती है, उसे घेरकर तीन बेटों की स्त्रियाँ, दो विधवां बेटियाँ कई चचेरे भाइयों भतीजों की स्त्रियाँ एक दो दासियाँ सब वही भरी रहती हैं। कुछ तम्बाकू खाती हैं, वे फर्श पर योंहीं थूकती रहती हैं। बच्चे १५-२० बेतरतीबी से योहीं खेलते कूदते फिरा करते हैं। कभी रोते, कभी मचलते, कभी शोर मचाते और कभी ठूस ठूस कर खाते और वहीं सो रहते हैं।

ये स्त्रियाँ दिन भर कुछ काम नहीं करती। उनका ख़ास काम पतियों की आज्ञा पालन करना या सोना है। वे सब घर में ठाकुर पूजा करती हैं, भोजन के समय पति को खिलाकर खाती हैं। कभी पति से बोलती नहीं, उसके सामने आती नहीं, दिन भर पान कचरती, मिठाइयाँ खाती या सोती रहती हैं, उनकी बातचीत का विषय गहना, कपड़ा, बच्चों की बीमारियाँ, बच्चे