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कुछ भी सार नहीं है। और उन नई प्रथाओं को हम स्वीकार नहीं कर सकते जो हमारी उन्नति और रक्षा के लिये बहुत ज़रूरी है।

सती होना हिन्दू समाज में किसी ज़माने में उच्च कोटि का हिन्दू धर्म समझा जाता था। और शताब्दियों तक स्त्रियां ज़बर्दस्ती सती होती रही जिनके वर्णन ही अत्यन्त रोमांचकारी हैं। हिन्दू विधवा का जीवन कैसा रोमांचकारी, कथापूर्ण, कष्टों का समुद्र और शुष्क है यह प्रत्येक हिन्दू को विचारने के योग्य है। यहां हम एक अभागिनी विधवा का जो समाचार पत्रो में सती कह कर प्रसिद्ध की गई थी थोड़ा सा संक्षिप्त हाल लिखते हैं।

दो वर्ष की आयु में एक धनी घर में उसकी सगाई हुई और ८ वर्ष की आयु में वह विधवा होगई। इसके बाद वह संयुक्त परिवार के १७ स्त्री पुरुषों के बीच में रहने लगी। वह शीघ्र ही उन सब की गालियां और तिरस्कार एवं मारपीट की अधिकारणी हो गई। सब से अधिक अत्याचार उस पर सास और विधवा ननद का था। उसने बड़े कष्ट से ६ साल काटे। उसके ऊपर यौवन आया और संसार का सब से बड़ा संकट उसके सन्मुख आया। उसके ज्येष्ट की कुदृष्टि उस पर पड़ी। वह नीच और लम्पट आदमी था। उसके भाव को ताड़ कर वह अभागिनी भयभीत रहने लगी, और अन्तमें उसने कुए में डूब मरने का इरादा कर लिया। इस इरादे को जान कर उसकी सास ने उसे क्रोध से पकड़ कर उसका हाथ उबलते हुए चावलों में डाल दिया और कहा—अब समझ कि मरना कैसा है? अभागिनी स्त्री उस पीड़ा को सह