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बाल विवाह इस कुकर्म का दूसरा स्वरूप है। आज ढाई करोड़ विधवायें इस कुकर्म के फल स्वरूप हिन्दुओं की छाती पर बैठी ठण्डी सांसे ले रही हैं। कोई ज़हर खाकर दुःख से छुटकारा पाती है, कोई भंगी, कहार, मुसलमान के साथ भागकर ख़ानदान का नाम रोशन करती हैं।

कन्या विक्रय एक भयानक अपराध तो है ही वह भीषण पाप भी है, परन्तु इस अपराध और पाप की ज़िम्मेदारी उन बदनसीब पशु प्रकृति पिताओं पर नहीं जो लोभ और स्वार्थ में अन्धे होकर अभागिनी, अज्ञान बालिकाओं को बेच देते हैं इसके असली जिम्मेदार तो वे धर्म शास्त्र हैं जिन्होंने बचपन की शादी को धर्म कर्म बताया, जिन्होंने रजस्वला कन्या को देखना नर्क का कारण बताया—जिन्होंने कन्याओं को दान करने की चीज़ बनाया, जिन्होंने पुत्रियों को समाज का अभिपाप-सन्तानों की निषिद्ध वस्तु ठहराया। यदि ये दूषित और लानत भेजने योग्य धर्म शास्त्र ऐसे बेहूदे विधान न करते तो आज पिता अभागिनी बालिकाओं को बेचने के लिये स्वाधीन न हो सकते थे। कन्यायें भी मनुष्य के अधिकारों को प्राप्त करतीं, और अपने जीवन, भविष्य और लाभ हानि पर विचार करतीं।

आज लाखों कन्यायें बूढ़े खूसटों के अत्याचार का शिकार बनती हैं। दो एक रोमांचकारी आँखों देखी घटना हम यहाँ बयान करना आवश्यक समझते हैं। एक करोड़ पति सेठ ने जिन्हें दीवान बहादुर का खिताब था, ६५ वर्ष की अवस्था में एक ११