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कलपती बालिका को बल पूर्वक हरण करके ज़बर्दस्ती ले जाया जाता है।
इन नियमों में ग़ौर करने की बात यह है कि कन्या को अपना वर स्वयं चुनने का गन्धर्व विवाह को छोड़कर कहीं भी अधिकार नहीं दिया गया। गन्धर्व विवाह की बात हम पीछे करेंगे। प्रथम तो हम दैव विवाह पर ग़ौर किया चाहते हैं कि एक आदमी जो यज्ञ कराने आया है, उसे बहुत सी दान दक्षिणा की चीज़ें दी जाती हैं, उसमें कन्या भी दी जा सकती है। यह केवल नियम ही नहीं, हम ऐसे उदाहरण दे सकते हैं। जिसमें राजाओं ने अपनी सुकुमारी राजपुत्रियाँ पुरोहितों को दे डाली हैं।
अच्छा, राक्षस विवाह को किस आधार पर विवाह माना जाता है? ज़बर्दस्ती, रोती, कलपती कन्या को बलपूर्वक हरण करके ले जाना अपराध है कि ब्याह? भीष्म जैसे ज्ञानी और महावीर ने यह अपराध किया था, वह काशीराज की तीन कुमारियों को ज़बर्दस्ती युद्ध करके छीन लाया था। न कन्या का पिता और न कन्या ही इसके अनुकूल थे। मैं जानना चाहता हूँ कि यदि भीष्म को ताजीरात दफा ३६६ के अनुसार मजिष्ट्रेट के सामने अभियुक्त बनाकर खड़ा किया जाय तो वे चाहे भी इस कर्म को धर्म की दुहाई दें वे सात वर्ष की सख़्त सज़ा पाये बिना नहीं रह सकते। और कोई भी आदमी न नैतिक दृष्टि से और न सामाजिक दृष्टि से किसी कन्या को इस प्रकार हरण कर सकता है, फिर यह कुकर्म विवाह तो हो ही नहीं सकता।