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आठवां अध्याय
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कुरीति और रूढ़ियां

ग़ुलाम और नामर्द क़ौमें हमेशा कुरीतियों और रूढ़ियों की दास हुआ करती हैं। हिन्दू जाति में भी इन दोनों चीजों की कमी नहीं। ये दोनों ही बातें अन्य जङ्गली और पतित जातियों के समान हिन्दुओं में धर्म विश्वास पर ही निर्भर हैं।

प्रत्येक जाति के जीवन का आधार प्रगति शीलता है, जिसमें प्रगतिशीलता नहीं—वह जाति ज़िन्दा नहीं रह सकती। हिन्दू जाति की प्रगति कब की नष्ट हो गई है। अब वह जाति केवल मौत की सांस ले रही है। सनातन धर्म हमारी आत्मा में रम गया है और हम उसी गढ़े का सड़ा हुआ ज़हरीला पानी पी पी कर मर रहे हैं जिसमें नये जल के आनेका कोई सुभीता ही नहीं है। यह सनातन धर्मदो हज़ार वर्ष से पुराना नहीं। पुराना होने पर भी मान्य नहीं।