लाला के घर बुलाया और लाला को जल्द अच्छा करने का वचन ले कर वे नोट उन्हें दे दिये। वैद्य जी उन्हें ज़ेब में डाल ज्यों ही बाहर निकले कि पुलिस ने उन्हें धर लिया। मुकदमा चला। और वैद्य जी दिल्ली छोड़ ऐसे गायव हुए कि जैसे गधे के सिर से सींग। पुलिस देर तक उनका वारंट लिये फिरती रही।
बम्बई में एक सम्पन्न मारवाड़ी व्यक्ति एक स्त्री को मेरे पास लाया और कहा कि यह मेरी साली है। इसे बायगोले की बीमारी है। उस स्त्री ने बहुत कहने सुनने पर भी पेट नहीं देखने दिया, केवल नाड़ी देखकर ही दवा देने का अनुरोध करती रही। लाचार उसका बयान सुनकर ही औषधि व्यवस्था कर दी गई। कुछ दिन तक वह नित्य आता रहा और तेज़ से तेज़ दवा देने का अनुरोध करता गया। फिर वह एकाएक नहीं आया। दो तीन दिन बाद हमें मालूम हुआ कि वह पकड़ा गया है। उसी साली को गर्भ था। बच्चा पैदा होने पर उसके सिर में कील ठोककर उसे घड़े में रखकर गटर में डाल दिया। भंगी ने देखकर पुलिस में इत्तला की। पुलिस को देखते ही वे लोग घर से नासिक भाग गये। मार्ग में स्त्री को सन्निपात होगया। और वह पुलिस के सामने बयान देकर मर गई। वह व्यक्ति फौजदारी सुपुर्द हुआ।
बहुधा साधु लोग भले घर की बहू बेटियों को ले भागते हैं। आम तौर पर यह दोहा प्रसिद्ध है—
ना संता ब्याहन चढ़ें, ना सिर बांधें मौर।
करी कराई ले भगें, ये सन्तों के तौर॥