पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/९६

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उत्पत्ति [४१ पच के पीछे मात बरस का अकाल होगा और मिन देश की सारी बढ़ती भुला जायगी और अकाल देश को नष्ट करेगा। ३१ । और उस अकाल के मारे बुह बढ़ती देश में जानी न जायगी क्येांकि वह बड़ा भारी अकाल होगा॥ ३२ । और फिरऊन पर जो खन्न दोहराया गया सो इस लिये है कि वुह ईश्वर से टहराया गया है और ईश्वर थोड़े दिन में उसे करेगा॥ ३३ । से छव फिरऊन एक चतुर बुद्धिमान मनथ्य ढूंढे और उसे मिस देश पर ठहरावे॥ ३४ । फिरजन वही कर और देश पर करोड़ा ठहरावे और सात बढ़ती के बरसे में मिस देश का पांचवां भाग लिया करे॥ ३५ । और वे अवैये अच्छे बरसे का मारा भोजन एकट्ठा करें और फिरजन के वश में अन्न धर रक्लें और बे अन्न नगरों में घर रक्ख ॥ ३६। और वही भाजन मिन के देश में अकाल के अवैये सात बरसों के लिये देश के भंडार के लिये होगा जिसने अकाल के मारे देश नष्ट न हो॥ ३७॥ तब यह बात फिरजन की दृष्टि में और उस के सारे सेवकों की दृष्टि में अच्छी लगी॥ ३८ । नब फिरऊन ने अपने सेवकों से कहा क्या हम इस जन के समान पा सक्ने हैं जिस में ईश्वर का आत्मा है। ३६ । और फिरजन ने यूसुफ से कहा जैसा कि ईश्वर ने ये सारी बातें तुझे दिखाई हैं से तेरे तुल्य बुद्धिमान और चतुर कोई नहीं है। १० । त मेरे घर का करोडाहा और मेरी सारी प्रजा तेरी आज्ञा में होगी केवल सिंहासन पर मैं बड़ा हंगा॥ ४१ । फिर फिरजन ने यूमुफ से कहा कि देख मैं ने तुझे मिस्र के सारे देश पर करोड़ा किया । ४२। और फिरजन ने अपनी अंगूटी अपने हाथ से निकाल के यूसुफ के हाथ में पहिना दिई और उसे झीना बस्न से विभूषित किया और सोने की सिकरी उस के गले में डाली॥ ४३। और उस ने उसे अपने दूसरे रथ में चढ़ाया और उस के आगे प्रचारा गया कि सन्मान करो और उस ने उसे मिस्र के सारे देश पर अध्यक्ष किया ॥ ४४ । और फिरजन ने यूसुफ से कहा कि मैं फिर जन में और तुझ विना मिस के मारे देश में कोई मनुष्य अपना हाथ पांव न उठावेगा ॥ ४५ । और फिरजन ने यसुफ का नाम सफनथफानिअख रकहा और उस ने न के नगर तुमसे