पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/७९

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३४ पर्च पुस्तक। नव एमो उमौ दिन शऔर के मार्ग लौट गया॥ १७। और यअव चलते चलते सुक्कात को आया और अपने लिये एक वर वनाया और अपने टोर के लिये पतकप्पर बनाये इसी लिये उम स्थान का नाम सुकात हुअा ॥ १८ । और यअकब फद्दानअराम से बाहर होके कनान देश के सालिम के नगर मिकम में आया और नगर के बाहर अपना तंबू खड़ा किया ॥ १९ । और जिस पर उस का नंबू खड़ा था उस ने उस खेत को हमूर के पिता सिकम के सन्तान से सौ टुकड़े रोकड़ पर मोल लिया ॥ २०॥ और उस ने वहां एक बेदी बनाई और उस का नाम ईश्वर इसराएल का ईश्वर रक्खा। जो ३४ चौतीसवां पर्च। पर लियाह की बेटी दोनः जिसे वह यशव के लिये जनी थी उम देश की लड़कियों के देखने को बाहर गई ॥ २। और जब उस देश के अध्यक्ष हवी हमूर के बेटे सिकम ने उसे देखा तो उसे ले गया और उसे मिल बैठा और उसे तुच्छ किया ॥ ३। और उस का मन यक्य की बेटी दीनः से अटका और उम ने उस लड़की को प्यार किया और उसके मन को कहीं। है। और सिकम ने अपने पिता हमूर से कहा कि इस लड़की को मुझे पत्नी में दिलाइये ॥ ५। और यअकब ने सुना कि उस ने मेरी बेटी दीनः को अशुद्ध किया उस समय में उम के बेटे उम के द्वार के साथ खेत में थे और उनके आने लों यअकूब चुप रहा॥ ६ । और सिक्रम का पिता हमूर बातचीत करने को यअकब पाम आया ॥ ७१ और सुनते ही यअकूब के बेटे खेत से या पहुंचे और वे उदास होके बड़े कोपित हुए क्योंकि उस ने इसराएल में अपमान किया कि यअकूब की बेटी के साथ अनुचित रीति से मिल बैठा॥ उन के माथ यो बातचीत किई कि मेरे बेटे मिकम का मन नम्हारी बेटी से नालसित है सो उसे उस को पत्नी में दीजिये। । और हमारे साथ समधियाना कीजिये अपनी बेटियां हमें दीजिये और हमारी बेटियां आप लीजिये। १० । और तुम हमारे साथ वास करोगे और यह भूमि तुम्हारे श्रागे होगी