पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/७२०

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राजावन्नौ नाली पर उतार लाया और वहां उन्हें बधन किया। ४१। फिर इलियाह ने अखिअब को कहा कि चढ़ जा खा और पौ कोकि मेंह का बड़ा शब्द है ॥ ४२ । सो अखिनब खाने पीने को उठ गया और इलियाह करमिस की चोटी पर चढ़ गया और आप को भूमि पर झुकाया और अपना मुंह दोनों घुटनों के बीच में किया ॥ ४३। और उस ने अपने सेवक को कहा कि अब चढ़ जा और समुद्र की ओर देख और उस ने जाके देखा और कहा कि कुछ नहीं उम ने कहा कि फेर सान बेर जा॥ ४४ । और सानवें बेर ऐसा हुआ कि वुह बेरला कि देख मनुष्य के हाथ को नाई मेघ का एक छोटा सा टुकड़ा समुद्र में से उठता है तब उस ने कहा कि चढ़ जा और अखिअब को कह कि सिद्ध हो और उतर जा न हो कि मेंह तुझे रोके ॥ ४५ । और इतने में ऐमा हुअा कि आकाश मेघां से और पबन से अंधेरा हो गया और अति वृष्टि होने लगी और अखि अब चढ़ के यजरअरेल को गया॥ ४६1 और परमेश्वर का हाथ इलियाह पर था और वुह अपनी कटि कस के अखिअब के आगे आगे यजरबऐल ले दोउ गया। १६ उनीसवा पर्च। व जो कुछ कि इलियाह ने किया घर अखिनब ने ईज़बिन से कहा से बध किया था। २। तब ई जबिन ने दूत की ओर से इलियाह को कहला भेजा कि यदि मैं तेरे प्राण को उन में से एक को नाई कल इस जुन ले न करूं तो देवगण मझ से वैसा ही और उनमे अधिक भौ करें । ३। और जब उम ने देखा तो बुह उठा और अपने प्राण के लिये गया और यहूदाह के बिबरसबा में आया और वहां अपने सेवक को कोदा। ४ । परन्तु आप एक दिन के मार्ग बन में पैठ गया और एक रतम वृक्ष तले बैठा और अपने प्राण के लिये मृत्यु मांगी और कहा अब हे परमेश्वर हो चुका है अब मेरा प्राण उठा ले क्योंकि मैं अपने पितरों से भला नहीं ॥ ५। और ज्यों बुह रतम वृक्ष के तले लेटा और सेा गया तो देखो कि एक दूत ने आके उसे कूत्रा और कहा कि उट खा ॥ ६ ।