पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/६९०

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से मन राजावली [८ पञ्च फैलाये॥ ३८ । सबल वर्ग पर से अपने निघाम स्थान से । सुन और क्षमा कर और संपर्ण कर और हर एक जन को जिस के मन को न जानता है उस की चालों के तुल्य प्रतिफल दे [क्योंकि केवल तू ही समस्त मनुष्यों के संतान के अंतःकरण को जानता है] ॥ ४ ० । जिमतें वे जीवन भर उस देश में जो तू ने उन के पितरों को दिया है तुझ से डरने रहें । ४१ । और उस परदेशी के विषय में जो तेरे दूसराएल लोग में से नहीं है परंत तेरे नाम के कारण परदेश से आवे॥ ४२ ॥ [क्योंकि वे तेरा बड़ा नाम और बलवंत भुजा और फैली हुई बांह को सुनें गे] जब बुह आवे और इस घर की और प्रार्थना करे। ४३ । तो खर्ग पर से अपने निवास स्थान और परदे शो की समस्त यांचना के समान उसे परा कर जिसने पृथिवी के समस्त लोग तेरे नाम को जाने और तेरे इसराएल लोग की नाई तुझे डरें और जिसमें वे जाने की तेरा नाम इस घर पर जिसे मैं ने बनाया है पकारा जाता है । ४४ । यदि तेरे लोग अपने बैरी पर संग्राम के लिये निकलें जहां कहौं तू उन्हें भेजे और परमेश्वर की प्रार्थना इस नगर की और कर जिसे न ने चुना है और इस घर की ओर जिसे मैं ने लेरे नाम के लिये बनाया है। ४५। तब तू खर्ग पर से उन की प्रार्थना और बिनती मुन और उन का पद स्थिर कर ॥ ४६ । यदि दे तेरे बिरुष्व पाप करें [क्यों कि कोई निष्पापी नहीं] और तू उन से क्रुद्ध होके बेरी को सौंप देजे यहां लो कि वे उन्हें अपने देश में दूर अथवा निअर ले जायें ॥ ४॥ जिस देश में वे बंधुआई में पहुंचाये गये यदि वे फिर के सोचें और पश्चा- लाप करें और उन के देश में जो उन्हें बंधाई में ले गये यह कहके विनती करें कि हम ने पाप किया है हम ने हठ किया है हम ने है॥ ४८। और अपने सारे मन से और सारे माण से अपने बैरी के देश में जो उन्हें बंधुनाई में लेगये थे तेरी और फिरें और अपने देश की और जो तू ने उनके पितरों को दिया और उस नगर की ओर जो मैं ने तेरे नाम के लिये बनाया तेरी मार्थना करें। नो तू अपने निवास स्थान वर्ग में से उन की प्रार्थना और विनती सुन और उन का पद स्थिर कर॥ ५.। और अपने लोगों को जिन्हे ने तेरे बिरुद्द पाप किया है क्षमा कर और सारे अपराधों को जो उन्हो ने तेरे विरुड़ अपराध दुष्टता किई ५।