पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/६८९

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३.। अपने कर पर की पुस्तक। बिनती पर मुरत नगा और अपने दाम का गिड़गिड़ाना और प्रार्थना सुन जो तेरे सेवक ने आज के दिन तेरे आगे किई है॥ २९ । जिसने रात दिन तेरी अांखें इस स्थान को और खुली रह उस स्थान की ओर जिम के विषय में तू ने कहा है कि मेरा नाम वहां होगा जिमते त उस प्रार्थना को भुने जा तेरा सेवक इम स्थान में करेगा। सेवक की बिनती सुन और जब तेरे इमरान लोग इस स्थान में प्रार्थना करें तो अपने निवास स्थान खर्ग में से सुन और सुन के क्षमा कर ॥ ३१ । यदि कोई पुरुष अपने परोसी का अपराध करें और वह उस्मे किरिया लेने चाहे और दूम घर में तेरी बेदी के अाग किरिया लाई जावे ॥३२ । न त स्वर्ग पर से सन चौर कर और अपने सेवकों का विचार और को दोषी ठहराके उस का पाप उसी के सिर पर ला और धर्मियों को निर्देष ठहराके उस धर्म के समान उसे पति फन दे ॥ ३३ । और जब तेरे इमराएल लोग तेरे विराध पाप करने के कारण अपने बैरियों के आगे मारे जायें और फिर तेरी गार किरें और तेरे नाम को मान लेवे और प्रार्थना करें और दूभ बर को और तेरी बिनती करें ॥ ३४ । तो तू वर्ग में मुन और अपने इसराएल लोगों के पाप को क्षमा कर और उन्हें उस देश में जो तू ने उन के पिता को दीया था फेर ला ॥ ३५ । जब तेरे बिरोध पाप करने के कारण से स्वर्ग बंद हो जावे और मेंह न वरसे यदि वे दूम स्थान की ओर प्रार्थना करें और तेरे नाम को मान लेवें और अपने पाप से फिरें इस लिये कि तू ने उन्हें दिया । ३६ । नो तू वर्ग में मुन और अपने सेवक और अपने इमराएल नाग के पाप को क्षमा कर जिसने उन्हें सच्चे मार्ग में जिन में उन्हें चन्नना उचित है सिखाने और अपने देश पर जामू ने अपने लोगों को अधिकार के लिये दिया है मेंह वरना ।। ३७। यदि देश में अकाल पड़े और यदि मरी हाय और खेती मुलस जाय और लढा लगे अथवा टिड्डी अथवा यदि कीड़े लगे यदि उन के वैरी उन के देश में उन के किमी नगरों में उन्हें घेरें और जो कुक मरी अथवा रोग होय ॥ ३८ । मनुष्य तेरे समस्त इ.मराशन लेाग से नो जन अपने ही मन की बुराई को जाने और पार्थना गौर विनती करे और अपने हाथ दुम घर की ओर काई से अथवा