पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/६७३

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को १ पुस्तक २] वुह बेदी के लग है तब मुलेमान ने यस्यदः के घटे चिनायाह का कहना भेजा कि उसे मार डाले। ३० । सेविनायाह परमेश्वर के तंबू में गया और उसे कहा कि राजा की आज्ञा है कि तू बाहर निकल बुह बोला कि नहीं मैं यहीं मरूंगा तब विनायाह फिर गया और राजा से कहा कि यूअव यो कहता है और उम ने मुझे यो उत्तर दिया ॥ ३१ । राजा ने उसे आज्ञा किई कि जैसा उम ने कहा है वैसा ही कर और उस पर लपक और उसे गाड़ जिस ते तू उम निष्पाप लोह को जो यूअब ने बहाया मुझसे और मेरे पिता के घराने से मिटा देवे ॥ ३२। और परमेश्वर उम का लोहू उसी के सिर पर धरेगा जिस ने दो मनुष्यों पर जो उरसे अधिक धम्मो और भले थे लपकके उन्हें तलवार से घात किया और मेरा पिना न जानना था अर्थात् इसराएली सेना के प्रधान नैयिर के बेटे अबिनविर को और यहूदाह की सेना के प्रधान यतर के बेटे अमामा केर ॥ ३३ । मेो उन का लोहू यूअब के सिर पर और उस के बंश के सिर पर मनातन लो पन्नटे परंतु दाऊद पर और उम के वंश पर और उस के घराने पर और उस के सिंहासन पर परमेश्वर की ओर से सदा कुशल होगा । ३४ । सो यस्यदः के बेटे बिनायाह ने जाके उस पर लपकके उसे मार डान्ना और बुह अरण्य में अपने ही घर में गाड़ा गया॥ ३५ ॥ फिर राजा ने यहयदः के बेटे विनायाह को उम की संतो सेना का प्रधान किया और मदूक याजक को राजा ने अदिवतर के स्थान पर रकवा ।। ३६ । फिर राजा ने शमीय को बुला भेजा और उसे कहा कि यस्मन्नम में अपने लिये घर बना और वहीं रह और वहां से कहीं बाहर मन निकन ॥ ३९। क्योंकि जिस दिन न बाहर निकलेगा और किरून की नाली के पार जायगा निश्चय जानियो कि अवश्य मारा जायगा तेरा लोहू तेरे हो सिर पर होगा.॥ ३८। और शमीय ने राजा से कि अाज्ञा उत्तम है जैमा मेरे प्रभु राजा ने कहा है वैसा ही नेरा सेवक करेगा मो शमीय बहुत दिन लो यरूमन्नम में रहा ॥ ३९ । और तीसरे बरम के अंत में एमा हुआ कि शमीय के दो सेवक जगत के राजा मकः के बेट अकीस कने भाग गये और शमीय से कहा गया कि देख तेरे सेवक जान में हैं॥४। तब शमोव ने उठके अपने गदहे पर काठी बांधी और कहा