पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/५६८

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0 कहा समूएल [१४ पब उन्होंने गिना तो क्या देखते हैं कि यूमनन और उस का अस्त्रधारी नहीं है। १८। नब साजल ने अखी को कहा कि ईश्वर को मंजूषा इहां ला [क्योंकि ईश्वर को मंजूघा उस समय में दूसराएल के पास थी] । १६। और ऐसा हुआ कि जब याजक से साजल बात करता था तब फिलिस्तियों की सेना में धूम होता चलाजाता था और साजल ने याजक से कि अपना हाथ खींच ले ॥ २० । और माऊल और लस के मारे लोग एकडे बुलाये गये और संग्राम को आये और देखो कि हर एक पुरुष का खङ्ग उम के संगी घर पड़ा और बड़ी गड़बड़ाहट हुई ॥ २१ ॥ और वे इबरानी भी जो अागे फिलिस्तियों के साथ थे और जो चारो ओर से उन के पास छावनी में गये थे वे भी फिर के उन इसराएलियां में जो साजल और यूनतन के साथ थे मिल गये ॥ २२ । और इसराएल के सारे लोग भी जिन्हेंा ने इफरायम पहाड़ में आप को किपाया था यह सुना कि फिलस्ती भागे वे भी संग्राम में उन्हें खदेड़ते गये ॥ २३ । और परमेश्वर ने उस दिन इमराएलियों को बचाया और लड़ाई बैतअवन के उस पार लेां पहुची। २४ । और दूसराएली लोग उम दिन दुःखी हुए. क्योंकि साजल ने लोगों को किरिया देके कहा कि जो कार्ड, सांकले खाना खावे उस पर धिकार निमते में अपने बैरियां से पलटा लेगी यहां लो कि किनो ने कुछ न चखा ॥ २५ । और समस्त देश बन में पहुंचे और वहां भूमि पर मधु था॥ २६ । और ज्याही लोग बन में पहुंचे तो क्या देखते हैं कि मधु टपकता है पर किसी ने अपने मुंह लो हाथ न उठाया क्योंकि लोग किरिया से डरे॥ २७॥ परंतु यूनतन ने न मुना था कि उस के पिता ने लोगों को किरिया दी सो उस ने अपने हाथ की छड़ी की नोक से मधु के छत्ते में चारा और हाथ में लेके मुंह में डाला और उन की श्राखों में ज्योति आई ॥ २८ । सब उन लोगों में से एक ने उसे कहा कि तेरे पिता ने दृढ़ किरिया देके कहा था कि जो जन आज कुछ खाब उस पर धिकार और उस समय लोग थके डर थे॥ २६। तब यूनतन बोला कि मेरे पिता ने देश को दुःख दिया देखो मैं ने तनिक सा मधु चखा और मेरी शांखों में ज्योनि आई। ३०। क्या न होता यदि सारे लोग बैरियों को लट से