पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/५४

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४४ उत्पनि [२४ पर्व दास और दासियां और ऊंट और गधे दिये हैं। ३६ । और मेरे खामी की पत्नी सर: बुढ़ापे में उस के लिय बेरा जनी और उस ने अपना सब कुछ उसे दिया है॥ ३७। और मेरे खामी ने यह कह के किरिया लिई कि तू कनानियों की बेटियों में से जिन के देश में मैं रहता हूं मेरे बेटे के लिये पत्नी मत लीजियो । ३८ । परन्तु मेरे पिता के घराने और मेरे कुटुंब में जाइयो और मेरे बेटे के लिये पत्नी लाइयो॥ ३६ । और मैं ने अपने स्वामी से कहा क्या जाने वुह स्त्री मेरे साथ न आवे॥ ४. । उस ने मुझे कहा कि परमेश्वर जिस के आगे मैं चलता हूं अपना टून नेरे संग भेजेगा और तेरी यात्रा सफल करेगा तू मेरे कुटुम्ब और मेरे पिता के घराने से मेरे बेटे के लिये पत्नी लीजियो । ४९ । और जब तू मेरे कुटुंब में श्रावे तब तू मेरी किरिया से बाहर होगा और यदि वे तुझे न देखें तो तू मेरी किरिया से बाहर हो जायगा। ४२ । सेा मैं आज के दिन कएं पर आया और कहा कि हे परमेश्वर मेरे खामी अबिरहाम के ईश्वर यदि तू अब मेरी यात्रा सफल करे। ४३ । देख मैं जलके कूएं पर खड़ा हूं और यों होगा कि जब कुमारी जल भरने निकले और मैं उसे कहूं कि मैं तेरी बिनती करता हूं कि अपने बड़े से मुझे थोड़ा पानी पिला ॥ ४४ । और बुह मुझे कहे कि तू भी पी और मैं तेरे ऊंटों के लिये भी भरूंगी तो वही बुह स्त्री हावे जिसे परमेश्वर ने मेरे खामी के बेटे के लिये ठहराया है। ४५ । इतनी बात मेरे मन में समाप्त न होतेही देखा रिबकः अपने कांधे पर घड़ा लेके बाहर निकली और वुह कूएं पर उतरी और खींचा और मैं ने उसे कहा कि मुझे पिला ॥ ४६ । उस ने फुरती करके अपना घड़ा उतारा और बोली कि पी और मैं तेरे अंटों को भी पिलाऊंगी से मैं ने पीया और उस ने ऊंटों को भी पिलाया। ४७। फिर मैं ने उसो पूक्का और कहा कि तू किसकी बेटी है बुह बोली कि नहर के बेटे बतूएल की लड़की जिसे मिलकः उस के लिये जनी और मैं ने नथ उस की नाक में और खड़वे उस के हाथों में डाले ॥ मैं ने अपना सिर झुकाया और परमेश्वर की स्तुति किई और अपने खामी अबिरहाम के ईश्वर परमेश्वर का धन्य माना जिस ने मुझे ठीक ४८। और