पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/५३७

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३ पर्च को पुस्तक । । ५२४ ३तीसरा पर्व । व उस की माम नअभी ने उसे कहा कि हे बेटी क्या मैं तेरा चैन हमारा कुटुम्ब नहीं जिस की कन्यों के साथ तू थी देख वुह आज रात खलिहान में जव ओसावता है। ३। सो तू स्नान कर और चिकनाई लगा और बस्त्र पहिन और खलिहान को उतर जा जब लो वुह खा पी न चुके नब लो आप को उस पुरुष पर प्रगट मत कर ॥ 1 और ऐसा हो कि जब वुह लेट जाय तब तू उस के शयन स्थान को देख रख और भीतर जाके उस के पांव को उघार और वहीं लेट जा और जो कुछ तुझे करना है वुह सब बतावेगा॥ ५। और उस ने उसे कहा कि जो तू मुझे कहती है मैं सब करूंगी॥ ६ । सो वुह खलिहान को उतर गई और जो कुछ कि उस को सास ने बाबा किई थी उस ने किया ॥ ७॥ और जब बोअाज खा पी चुका और उस का मन मगन हुआ अन्न के ढेर को एक अलंग जाके लेट गया तब उस ने होले होले आके उस के पांव को उधारा और लेट गई। ८। और ऐसा हुआ कि आधी रात को उस पुरुष ने डर के करवट लिई और क्या देखता है कि एक स्त्री उस के पांव पास पड़ी है। । तब उस ने पूछा कि तू कौन है और बुह बोली कि तेरी दासौ रूत त अपनी दासी पर अपने अंचल फैला क्योंकि तू छुड़ाने का अथवा कुटुम्ब का पद रखता है। १० । और उस ने कहा कि हे बेरी तू ईश्वर की धन्य क्योंकि त ने आरंभ से अंत को मुझ पर अधिक कृपा किई है इस कारण कि त ने तरुणों का पीछा न किया चाहे कंगाल चाहे धनमान हो। ११ । अब हे बेटी मत डर जो कुछ तू चाहती है मैं सब तुझ से करूंगा क्योंकि लोगों का सारा नगर जानता है कि तू धौ स्त्री है। १२। और यह सच है कि मैं कुड़ाने- वाला अथवा कुटुम्ब हूँ नयापि एक छुड़ानेवाला अथवा कुटुम्प मुक अधिक समीपी है। १३ । आज रात ठहर जा और बिहान को एमा होगा कि यदि नाते का व्यवहार पूरा करे तो भला नाते का व्यवहार करे और यदि बुह नाने का व्यवहार तुझ से न करे तो परमेश्वर के जीवन [A. B.S.] । 67