पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/५२०

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(१७ पर्च ५१२ न्यायियों आगे लौला करने लगा उन्हों ने उसे खंभों के मध्य में रक्ता॥ २६ । और शम्मून ने उस छोकड़े को जो उस का हाथ पकड़े हुए था कहा कि मुझे खंभे टटोलने दे जिन पर घर खड़ा है जिसने उन पर ओठगू॥ २७। और घर पुरुषों और स्त्रियों से भर पूर था और फिलिसतियों के समस्त प्रधान वहीं थे और तीन सहस के लग भग स्त्री पुरुष छत पर थे जो शम्सून की लीला देख रहे थे ॥ २८। नब शम्मून ने परमेश्वर को पुकारा और कहा कि हे प्रभु ईश्वर दया करके मुझे स्मरण कीजिये केवल इसी वार मझे बल दीजिये जिसमें मैं एकटे फिलिसतियों से अपनी दोनों अखिों का पलटा लेऊ। २६। तब शम्सून ने दोनों मध्य के खंभों को जिन पर धर खड़ा था एक को दाहिने हाथ से और दूसरे को बायें से पकड़ा। ३० । और शम्सून बोला कि मेरा प्राण भी फिलिस्तियों के साथ जाय से उन ने बल करके उसे झुकाया और घर उन प्रधानों और उन सब लोगों पर जो उस में थे गिर पड़ा और वे लोग जिन्हें उस ने अपने साथ मारा उन से अधिक थे जिन्हें उसने अपने जीते जी मारा था। ३१ । नब उस के भाई और उस के पिता के सारे घराने आये और उसे उठाया और उसे सुरः और इसताल के मध्य में उस के पिता मनूहा की समाधि स्थान में गाड़ा और उस ने बीस बरस लो दूसराएल का न्याय किया। १७ सनरहवा पर्चा भर इफरायम पहाड़ का एक जन था जिम का नाम मौका था॥३॥ और उस ने अपनी माता से कहा कि वे ग्यारह सौ रुपये जा लिये गये थे जिस के कारण नू ने साप दिवा और जिम के विषय में मैं ने भी सुना देखा चांदी मेरे पास है में ने उसे लिया और उस को माता बोली कि हे मेरे बेटे ईश्वर का धन्य बाद । ३ । और जब उस ने ग्यारह सौ चांदी अपनी माता को फेर दिई तब उन की माला ने कहा कि मैं ने यह चांदी अपने बेटे के लिये अपने हाथ से सर्वथा परमेश्वरार्पण किया था कि एक खादी हुई और एक ढालो हुई मनि बनाऊं से अब मैं तझे फेर देतो ४ । नथापि उस ने वुह रोकड़ अपनी माता को दिया और उस और