पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/५१४

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न्यायियों [१४ पन्न और १४ चौदहवा पर्च। र शम्भून निमन: में उतरा और निमन: में उम ने फिलिसतियों की बेटियों में से एक स्त्री को देखा ॥ २। और उस ने ऊपर आके अपने माता पिता से कहा कि मैं ने फिलिसतियों की बेटियां में से तिमनः में एक को देखा सो उसी मेरा विवाह करा देशा॥ ३। तब उस के माता पिता ने उसे कहा कि क्या तेरे भाइयों की बेटियों में और मेरे सारे लोगों में कोई स्त्री नहीं जो तू अखतना फिन्तिसतियों में से पत्नी लिया चाहता है और शम्सून ने अपने पिता से कहा कि स्त्री को मुझे दिलाइये क्योंकि बुह मेरे मन में भाई है। ४ । परंतु उस के माता पिता न समझे कि यह परमेश्वर की ओर से है और फिलिसतियों से बैर ढूंढ़ता है क्योंकि उस समय में फिलिसती दूसराएलियों पर प्रभुता करते थे । ५। तब शम्सूग अपने माता पिता के मंग तिमनः को उत्तरा और तिमनत के दाख की बारियों में आये और क्या देखता है कि एक युबा सिंह उस के सन्मुख गर्जता हुश्रा उस पर आ पहुंचा ॥ ६। तब परमेश्वर का आत्मा सामर्थ्य के साथ शम्सून पर पड़ा और उस ने उसे ऐसा फाड़ा जैसे कोई मेम्ना को फाड़ता है और उस के हाथ में कुछ न या परंतु जो कुछ उस ने किया था से अपने माता पिता से भी न कहा। ७। तब उस ने जाके उस स्त्री से बात किई और वह शम्सून के मन में भाई॥ कितने दिनों के पीछे वह उसे लेने फिरा और बुह अलग होके उम सिंह को लोथ देखने गया और क्या देखता है कि सिंह की लाथ में मधु का झंड और छन्ना है। । तब उस ने उस में से हाथ में लिया और खाता हुआ चला गया और अपनी माता पिता के पाम आया और उन्हें भी कुछ दिया उन्हों ने खाया परंतु उम् ने उन्हें न कहा कि यह मधु मिह की लाथ में से निकला। १..। फिर उस का पिता उस स्त्री के पास गया और वहां ससून ने जेवनार किया क्यों क तरुणी का यह व्यवहार ११। और ऐसा था कि जब उन्हों ने उसे देखा तो वे तीस संगी का लाये कि उस के साथ रहें । १२। और शासन ने उन्हें कहा कि में तुम से एक पहेलो कहता हूं वदि तुम जेवनार के मान दिन के भीतर ८। और था॥