पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/५०९

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११ पन्ने] को पुस्तक । ५०१ अभूरियों के राजा सैहन को हसबन के राजा कने दूत भेजे और उसे बोले कि हमें अपने स्थान को अपने देश में से जाने दीजिये। २० । पर सैहन ने उन्हें अपने सिवाने से जाने न दिया परंतु सैहन ने अपने लोग एकट्ठ किए और यहास में डेरा खड़ा किया और दूसराएल से लड़े। २१। और परमेश्वर इसराएल के ईश्वर ने सेहन को उस के सारे लोग समेत इसराएल के हाथ में सौप दिया और उन्हों ने उन्हें मारा सो दूसराएलियों ने अमूरियों के सारे देश और उस देश के बामियों का अधिकार पाया ॥ २२। और उन्हों ने अनून से लेके यबूक ले और अरण्य से यरदन लो अमूरियों के सारे सिवानों को वश में किया ॥ २३ ॥ सो अब परमेश्वर इसराएल के ईश्वर ने अमरियों को अपने इसराएल लोग के आगे से दूर किया तो क्या तू जसे वश में करेगा॥ २४। जो तेरे देव कमूस ने तेरे वश में किया है उसे नहीं चाहता है सो परमेश्वर हमारा ईश्वर जिन्हें हमारे आगे से दूर करेगा हम उन्हें वश में करेंगे। २५ । और क्या तू मात्र के राजा सप र के बेटे बलक से भला है उस ने कभी इसराएल से झगड़ा किया अथवा उस ने कभी उन से २६ । जब लो इसराएल हसबून में और उस के नगरों में और अरआयर और उस के नगरों में और उन सब नगरों में जो अनेन के सिवानों में है तीन सौ बरस रहा किए उस समय लो तुम ने उन्हें क्यों न छुड़ाया ॥ २७ । सो मैं ने तेरा अपराध नहीं किया परंतु मुझ से युद्ध करने में तू अनुचित करता है सो परमेश्वर न्यायी इमराएल के संतान के और अम्मून के मंतान के मध्य में आज के दिन न्याय करे। २८। तिस पर भी अमान के संतान के राजा ने उन बातों को जो इफलाह ने उसे कहा भेजी नमुना ॥ २६ । तब परमेश्वर का आत्मा दूफताह पर पाया और जिसिअद वार मुनस्मी के पार गया और जिनिअद के मिसफा से पार गया और जिलि अद के मिसफा से अम्मन के संतान की ओर उतरा। ३० । और इफ़ता ह ने परमेश्वर की मनौती मानी और कहा कि यदि तू मचमुच अम्मन के संतान को मेरे हाथ में सांप देगा॥ ३९। तो ऐसा होगा कि जब में अम्मून के संतान से कुशल से फिर आऊंगा तेर जो कुछ मेरे घर के द्वारों से पहिले मेरो भेंट को निकलेगा वुह निश्चय परमेश्वर किया।