पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/५०

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४. उत्पत्ति [२३ पर्छ जोर २३ तेईसा पर्च। र सरः की बय एक सौ सताईस बरस की हुई सरः के जीवन के बरस इतने थे ॥ २। और सरः करयत अरब में जो कनडान देश में हवरून है मर गई तब अबिरहाम सरः के लिये विलाप करने और रोने को आया ॥ ३। फिर अबिरहाम अपने मृतक से उठ खड़ा हुआ और हिन के बेटो से यह कहिके बोला । ४। कि में परदेशी और तुम में टिकवैया हूं तुम अपने यहां मुझे एक ममाधि का स्थान अधिकार में दो जिसने मैं अपने मृतक को अपनी दृष्टि से अलग गाडूं॥ ५। हित के संतान ने अबिरहाम को उत्तर देके कहा ॥ ६ । कि हे स्वामी हमारी सुनिये आप हम्में ईश्वर के अध्यक्ष हैं सो श्राप हमारे समाधिन में से चुनके एक में अपने मृतक को गाड़िये हम्म कोई अपनी समाधि श्राप से न रख छोड़ेगा जिसमें आप अपने मृतक को गाउँ॥ ७। तब अविरहाम खड़ा हुआ और उस देश के लोग अर्थात् हित के संतान के प्रणाम किया। ८। और उन से वात चीत करके कहा कि यदि तुम्हारा मन होवे कि मैं अपने मृतक को अपनी दृष्टि से अलग गाडू तो मेरी सुनो और मेरे लिये सुहर के बेटे इफरून से बिनती करो॥ । जिमतें बुह मकफीतः को कंदला मुझे देबे जा उस के खेत के सिवाने पर है उस का परा मोल लेके मेरे वश में करदे जिसने मैं तुम्हां में एक समाधि का अधिकार रक॥ ९० । और इफरून हिन के संतानों में वास करता था और इफरून हली मे हिस के संतानों के और सबके सुन्ने में जो नगर के फाटक में गये थे अविरहाम को उत्तर में कहा ॥ ११ । नहीं मेरे प्रभु मेरी सुमिय में यह खेत आप को देता है और वुह कंदला जो उम् में है आप को देता हूं मैं अपने लोगों के बेटों के आगे अाप को देता है अपना मृतक गाड़िये॥ १२। तब अधिरहाम ने उस देश के लोगों को प्रणाम किया ॥ १३ । फिर उस देश के लोगों के सुन्ने में बुद्ध इफरून से यो कहिके बोला कि यदि तू देगा नों मेरी सुन ले मैं तुझे उस खेत के लिये रोकड़ द जंगा मुसे ले और मैं अपने मृतक को यहां गाडूंगा ॥ २४। इफरून ने अविरहाम