पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/४४५

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को पुस्तक ओ ४३७ बात भी न रही जिसे यहूसूत्र ने इसराएल की सारी मंडली चार स्त्रियों और कालको और उन परदेशियों के आगे जो उन में चलते थे म पढ़ी। र नवां पर्म। रायों हुया कि जब सारे राजाओं ने जो यरदन के इसी पार पहाड़ों में और तराइयों में और महासागर के समत्त नीरों में नो लुबनान के आगे हैं हिनी और अमरी और कनानी और फिरज्जी और हबी और जयूसी ने सुना । २। तो वे एक मता होके यहून और इसराएल के संतान से संग्राम करने के लिये एकट्ट हुए । ३। और जो कुछ यहस्य ने यरीह और अब से किया था जब जिवन के बामियों ने सना ।। ४ । तव उन्हों ने कपट से टूत का भेष बनाके पुराने पुराने बारे और पुराने और टूटे और जाड़ हुए मदिरा के कुप्पे अपने गदहों पर लादे ॥ ५। और पुरानो और जोड़ो हुई जती पांग्रे में और अपनी देह पर पुराने बस्त्र और उन के भोजन को रोटी सूखो और फफूंदो नगी हुई ॥ ६ । वे यहसू पास जिलजाल की छावनौ में गये और उसे और दूसराएल के लोगों से कहा कि हम दूर देश से प्राये हैं से। अब तुम हम से बाचा वांधे।। ७॥ तव दूसराएल के लोगों ने हनियों से कहा कि कदाचित् तुम हमों में वास करते हो फेर हम तुम से क्योंकर मेल कर। ८। उन्हों ने यहसूत्र से कहा कि हम तेरे सेवक हैं तब उम ने उन से पूछा कि तुम कौन और कहां से धाये हो॥ । और उन्हों ने उसे कहा कि मेरे सेवक परमेश्वर तेरे ईश्वर के नाम के लिये अति दूर देश से आये हैं क्योंकि हम ने उस की कीर्नि सनी है और सब जो उत्त ने निस में किये ॥ १०। और सब जा उम ने अमरियां के दो राजाओं से जो परदन के उस पार अथात् हसबुन के राजा सैहन और वसन के राजा कुज से जो अपतरून में घा किये ॥ ११। इस लिये हमारे माचीम और हमारे देश के समस्त बासी हम से कहके वाले कि तम यात्रा का भोजन अपने साथ लेगा और उन से भेंट करो और उन्हें कहा कि हम तुम्हारे सेवक हैं इस लिये तुम हम से मेल करो ॥ २२ ।