पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/४३

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१६ पर्ब] 1 की पुस्तक की कृपा उस पर थी और उसे निकालकर नगर के बाहर डाल दिया ।। १७ । और उन्हें बाहर निकाल के यों कहा कि अपने प्राण के लिये भाग और पौके मत देखना और सारे चैरगान में न ठहरना पहाड़ पर भाग जा न होवे कि तू भस्म होवे ॥ २८ । तब लूत ने उन्हें कहा कि हे मेरे प्रभु ऐसा नहीं। १६ । देखिये अब आप के दास ने आप की दृष्टि में अनुग्रह पाया है और तू ने अपनी दया बढ़ाई है जो तू ने मेरे माण बचाने में दिखाई है मैं अब पहाड़ पर नहीं जा सका न होवे कि कोई बिपत मुझ पर पड़े और मैं मर जाऊं। २० । अब देखिये कि यह नगर भागने को समीप है और वुह छोटा है मुझे उधर जाने दीजिये वुह क्या छोटा नहीं सो मेरा प्राण बच जायगा ॥ २१ । और उस ने उसे कहा कि देख इस बात के विषय में भी मैं ने तेरे मुंह को ग्रहण किया है कि मैं इस नगर को जिस कौ त ने कही उलट न देऊंगा ॥ २२। शीघ्र कर और उधर भाग क्योंकि जबलों तू वहां न पहुंचे में कुछ कर नहीं सक्ता इम लिये उस नगर का नाम सुन रक्खा ॥ २३ । सूर्य प्रथिवी पर उदय हुआ था जब लून सुग में पहुंचा ॥ २४ । तब परमेश्वर ने सदम और मूरः पर गंधक और आग परमेश्वर की ओर से वर्ग से बरसाया ॥ २५॥ और उन नगरों को और नगरों के सारे निवासियों को और सारे चौगान को और जो कुछ भूमि पर जगता था उलट दिया ॥ २६ । परन्तु उस की पत्नी ने उस के पीछे से फिरके देखा और वुह लोन का खंभा बम गई । । २७। और अबिरहाम उठके विहान को तड़के उस स्थान में जहां वुह परमेश्वर के आगे खड़ा था आ पहुंचा॥ २८। और उस ने सदम और अमूरः और चौगान की सारी भूमि की ओर दृष्टि किई तो क्या देखता है कि उस भूमि से भट्ठी का सा धूआं उठ रहा है॥ २६। और यो हुआ कि जब ईश्वर ने चौगान के नगरों को नष्ट किया तब ईश्वर ने अबिरहाम को स्मरण किया और उन नगरों को जहां लूत रहता था नष्ट करते हुए लूत को उस विपत्ति से छुड़ाया ॥ ३०। और लूत अपनी बेरिया समेत सुय से पहाड़ पर जा रहा क्योंकि वुह सुप को डरा तब वुह और उस की दो बेटियां एक कंद ला में जा रहे ॥ ३१ । और पहिलाठी ने कुटकी से कहा कि हमारा पिता न है और [A, B. 8.) 5